THANK YOU
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में,अजीब लगते-लगते अज़ीज़ बनता जाता हूँ
कोई भी दीन दुनिया की,रिवायतें नहीं बदलीं /
तेरे सपने नहीं बदले,मेरी ख्वाहिशें नहीं बदलीं //
भरम छोड़ो,की इस रिश्ते में कुछ बदला /
हमारे बीच तो दशकों से,शिकायतें नहीं बदलीं //-
कोई सावन,कोई फाल्गुन कोई वैशाख बन बैठा /
मिटा कर दाग की हस्ती वो दामन,पाक बन बैठा // नियत में खोट ले शहरान सभी,देखते रहे /
किसी के डूब जाने से,कोई तैराक बन बैठा //-
कुछ तो नज़र की बात है,और कुछ उड़ान की
वर्ना तो हस्ती क्या है सूने आसमान की //-
इस दौलत के जाने से क्या होगा खसारा अपना ?
अलग ब्यापार था !
अलग था बाजारा अपना !
लुटेगा सब पर फांकों पे नही आउंगा,
ग़ुरूर बेच के कर लूंगा गुज़ारा अपना ।-
हम मुतासिर तो थे तजल्लियों के,मगर
हुआ न मयस्सर तसल्ली तक का सहारा/
जो जलते रहे तो सब ज़ायक़े में थे
जो बुझ गए तो,,मुरदा,,जिक्र भी हमारा/-
ऐसा नहीं है कि
याद में तड़प नहीं बची /
लबों पे बस अब कोई
तलब नहीं बची /
बची हैं मुझमें बातें
बस दीन दुनिया की /
यार अब वो दिल में क्यों
धड़क नहीं बची ?
सौंपा है अब सारा काम मैने
दिमाग को /
मन में तो अब कोई हवस नहीं बची/-
तुमने हमारा जवाब न समझा
हाँ हमने भी वो सवाल न समझा /
समझी तुमने सब गलती हमारी
कभी हमारा मलाल न समझा //-
क्या हुआ जो उस से बात न हुई /
हां पर मेरी बात हुई है //
हाथ मेरा वो न छोड़ेगा /
उसके हाथों से बात हुई है //
उसने मुझको अपना लिया है /
एक बोसे से शुरुआत हुई है //
बेचैन बहुत है वो मेरे बिन /
बिस्तर की सलवटें कहती हैं //
तकिया मुझसे कान में बोला /
बिन मौसम बरसात हुई है //
ये बातें तो कह दूंगा पर,
वो कैसे कह पाऊंगा /
जो वादे रूहानी हो बैठे हैं,
और जो मन से मन की बात हुई है //-
मेरी आंखों में एक तरीके का हुनर है।
मसाला शब्दों का नहीं,ये सलीखे का कुफर है।
वक्त वे वक्त वो मुझे कहता है, लापरवाह
ये वो कहता है जिसकी मुझे ज्यादा फिक्र है ।
मैंने वो सजर ,वो शहर,वो गली छोड़ दी
जिसमें तेरे नाम , तेरे चेहरे ,तेरी आहट का ज़िक्र है
तुझसे जो ली गणित की तालीम ,तो मुझे इल्म हुआ
मेरी जान , मेरे तो चारो सम्त ही शिफर है ।-