इस दौलत के जाने से क्या होगा खसारा अपना ?अलग ब्यापार था !अलग था बाजारा अपना !लुटेगा सब पर फांकों पे नही आउंगा,ग़ुरूर बेच के कर लूंगा गुज़ारा अपना । -
इस दौलत के जाने से क्या होगा खसारा अपना ?अलग ब्यापार था !अलग था बाजारा अपना !लुटेगा सब पर फांकों पे नही आउंगा,ग़ुरूर बेच के कर लूंगा गुज़ारा अपना ।
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हम मुतासिर तो थे तजल्लियों के,मगरहुआ न मयस्सर तसल्ली तक का सहारा/जो जलते रहे तो सब ज़ायक़े में थेजो बुझ गए तो,,मुरदा,,जिक्र भी हमारा/ -
हम मुतासिर तो थे तजल्लियों के,मगरहुआ न मयस्सर तसल्ली तक का सहारा/जो जलते रहे तो सब ज़ायक़े में थेजो बुझ गए तो,,मुरदा,,जिक्र भी हमारा/
ऐसा नहीं है कियाद में तड़प नहीं बची /लबों पे बस अब कोई तलब नहीं बची / बची हैं मुझमें बातेंबस दीन दुनिया की /यार अब वो दिल में क्यों धड़क नहीं बची ?सौंपा है अब सारा काम मैनेदिमाग को /मन में तो अब कोई हवस नहीं बची/ -
ऐसा नहीं है कियाद में तड़प नहीं बची /लबों पे बस अब कोई तलब नहीं बची / बची हैं मुझमें बातेंबस दीन दुनिया की /यार अब वो दिल में क्यों धड़क नहीं बची ?सौंपा है अब सारा काम मैनेदिमाग को /मन में तो अब कोई हवस नहीं बची/
तुमने हमारा जवाब न समझाहाँ हमने भी वो सवाल न समझा /समझी तुमने सब गलती हमारीकभी हमारा मलाल न समझा // -
तुमने हमारा जवाब न समझाहाँ हमने भी वो सवाल न समझा /समझी तुमने सब गलती हमारीकभी हमारा मलाल न समझा //
क्या हुआ जो उस से बात न हुई /हां पर मेरी बात हुई है //हाथ मेरा वो न छोड़ेगा /उसके हाथों से बात हुई है //उसने मुझको अपना लिया है /एक बोसे से शुरुआत हुई है //बेचैन बहुत है वो मेरे बिन /बिस्तर की सलवटें कहती हैं //तकिया मुझसे कान में बोला /बिन मौसम बरसात हुई है //ये बातें तो कह दूंगा पर,वो कैसे कह पाऊंगा /जो वादे रूहानी हो बैठे हैं,और जो मन से मन की बात हुई है // -
क्या हुआ जो उस से बात न हुई /हां पर मेरी बात हुई है //हाथ मेरा वो न छोड़ेगा /उसके हाथों से बात हुई है //उसने मुझको अपना लिया है /एक बोसे से शुरुआत हुई है //बेचैन बहुत है वो मेरे बिन /बिस्तर की सलवटें कहती हैं //तकिया मुझसे कान में बोला /बिन मौसम बरसात हुई है //ये बातें तो कह दूंगा पर,वो कैसे कह पाऊंगा /जो वादे रूहानी हो बैठे हैं,और जो मन से मन की बात हुई है //
मेरी आंखों में एक तरीके का हुनर है।मसाला शब्दों का नहीं,ये सलीखे का कुफर है।वक्त वे वक्त वो मुझे कहता है, लापरवाहये वो कहता है जिसकी मुझे ज्यादा फिक्र है ।मैंने वो सजर ,वो शहर,वो गली छोड़ दी जिसमें तेरे नाम , तेरे चेहरे ,तेरी आहट का ज़िक्र हैतुझसे जो ली गणित की तालीम ,तो मुझे इल्म हुआ मेरी जान , मेरे तो चारो सम्त ही शिफर है । -
मेरी आंखों में एक तरीके का हुनर है।मसाला शब्दों का नहीं,ये सलीखे का कुफर है।वक्त वे वक्त वो मुझे कहता है, लापरवाहये वो कहता है जिसकी मुझे ज्यादा फिक्र है ।मैंने वो सजर ,वो शहर,वो गली छोड़ दी जिसमें तेरे नाम , तेरे चेहरे ,तेरी आहट का ज़िक्र हैतुझसे जो ली गणित की तालीम ,तो मुझे इल्म हुआ मेरी जान , मेरे तो चारो सम्त ही शिफर है ।
वो मेरे हर्फ़ से न खुश थीतब मैंने उसपर ग़ज़ल कही /आई थी मुझपे कहर ढानेकरके मुझपे फ़ज़ल गई // -
वो मेरे हर्फ़ से न खुश थीतब मैंने उसपर ग़ज़ल कही /आई थी मुझपे कहर ढानेकरके मुझपे फ़ज़ल गई //
सदियों पहले की बात है ,सदियों पहले एक ख़्वाब था ।ख़्वाब मुक्कम्मल भी होते हैं,यही मुकर्रर सवाल था ।फिर तू मिली तपाक से,मैं नींद से जागा झपाक से ।हां ख़्वाब मुक्कमल होते ज़वाब मय्यास हो गया ,तेरा हाथ मेरे हाथ में मेरा ख़्वाब मुक्कमल हो गया । -
सदियों पहले की बात है ,सदियों पहले एक ख़्वाब था ।ख़्वाब मुक्कम्मल भी होते हैं,यही मुकर्रर सवाल था ।फिर तू मिली तपाक से,मैं नींद से जागा झपाक से ।हां ख़्वाब मुक्कमल होते ज़वाब मय्यास हो गया ,तेरा हाथ मेरे हाथ में मेरा ख़्वाब मुक्कमल हो गया ।
अधूरी निगाहें अधूरे से मंज़र अधूरे लबों पर सुखन रख रहे हो /अभी राब्ते में बाकी है धड़कन क्यों इस पर तुम यूँ कफ़न रख रहे हो // -
अधूरी निगाहें अधूरे से मंज़र अधूरे लबों पर सुखन रख रहे हो /अभी राब्ते में बाकी है धड़कन क्यों इस पर तुम यूँ कफ़न रख रहे हो //
आप,तुम या कि तू कहो मुझे /बस,,लफ़्ज़ों से और ज़ेहन से हू-ब-हू कहो मुझे // -
आप,तुम या कि तू कहो मुझे /बस,,लफ़्ज़ों से और ज़ेहन से हू-ब-हू कहो मुझे //