हर शक्श खराब है, हर बात विवाद है;
वो दे भी दें गर शराब हमें, हमें लगता हराम है!
मैंने तोड़ दिया था जिसे शान में, हर खंड मांगे पहचान है;
की जरा देखकर रखना कदम अपने, उस मुर्दे में अभी जान है!
किसे सुनाए अपना मलाल हम, किसे दे दें ये खिताब हम;
किसके खड़े हों खिलाफ़ हम, कहां मांगे अब इंसाफ हम!?
कहीं छूटती लगन है, कहीं बिखरते कदम हैं;
बेशक वो छोड़ देती लहज अपनी, पर उसे आवाज़ उठाने की शर्म है!
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