Aastha   (Aastha♡)
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I don't know who I am for I am not the one whom I know.
Joined 10 May 2020


I don't know who I am for I am not the one whom I know.
Joined 10 May 2020
15 NOV 2023 AT 14:03

लाख मुखौटों से गुजरी बातें अक्सर तीखी लगती हैं
तुम जाके हाल उनका पूछना जरूर,
कि उनकी नज़रें आज भी भीगी लगती हैं!

बड़ी मशक्कत से अंत मुकम्मल होता है
तुम देखना जंग को करीब से कभी,
हर जीत से पहले एक रणनीति लगती है!

आसान होता होगा मापना किसी की नाकामियों को 'आस्था'
तुम मिलना उस कलम से कभी,
जिसकी स्याही आज भी फीकी लगती है!

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29 OCT 2023 AT 18:18

नज़रों की नूर भी बेफिजूल बन जाती है,
सोचो क्या ही होगी खुद्दारी उसकी
जो तामील में धूल बन जाती है!

अदाओं से नपती है,
बाजारों में बिकती है;
वो काफिरों की हबस के चलते हूर बन जाती है!

कि बड़ी सस्ती होती है तस्लीम उसकी;
वो अक्सर ताल्लुकात में चूर बन जाती है!

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22 OCT 2023 AT 12:50

वो कहते हैं हम उनके लहज़े में शुमार हैं,
लाज़िम इश्क रंग लाने लगा है हमारा!

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13 OCT 2023 AT 20:50

पता है!?
कई सवाल रखा करते थे हम तुमसे पूछने के लिए,
फकत मिलना तुम्हारा हमारा जवाब बन गया!

कि नशे आज भी कमाल रखते हैं हम 'जानी',
मगर मिलना तुम्हारा हमारा शराब बन गया!

और गम कितने भी पेचीदा क्यूं ना हो मगर,
इक मिलना तुम्हारा हमारा नकाब बन गया!

हम समझते हैं बेहद खुशनसीब खुद को,
कि मिलना तुम्हारा हमारा गुमान बन गया!

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24 SEP 2023 AT 17:31

हर शक्श खराब है, हर बात विवाद है;
वो दे भी दें गर शराब हमें, हमें लगता हराम है!

मैंने तोड़ दिया था जिसे शान में, हर खंड मांगे पहचान है;
की जरा देखकर रखना कदम अपने, उस मुर्दे में अभी जान है!

किसे सुनाए अपना मलाल हम, किसे दे दें ये खिताब हम;
किसके खड़े हों खिलाफ़ हम, कहां मांगे अब इंसाफ हम!?

कहीं छूटती लगन है, कहीं बिखरते कदम हैं;
बेशक वो छोड़ देती लहज अपनी, पर उसे आवाज़ उठाने की शर्म है!

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6 SEP 2023 AT 16:11

कई आंखें तड़पती हैं भरी धूप में;
कि आशियां हर सिर को मिल जाए,
मुमकिन तो नहीं!

जमाना जलील करता ही है बेसहारों को;
मुआइना हर जुबान का किया जाए,
मुमकिन तो नहीं!

आज भी हात अनगिनत बिछते हैं बाजारों में;
अक्श हर किसी का अनछुआ मिल जाए,
मुमकिन तो नहीं!

इन चार दीवारों से बहुत बड़ी है दुनिया 'आस्था';
हर शख्स साफ सुथरा मिल जाए,
मुमकिन तो नहीं!

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23 JUL 2023 AT 16:11

सुनो!
मेरे शहर आना मत तुम,
यहाँ आशिकों की कदर नहीं होती;
मैं अपनी दहलीजें लाँघकर
तुमसे मिलने आऊँगी!
तुम्हारी उम्मीदें टूट जाएंगी यहाँ,
सब ख्वाईशें बिखर जाएंगी;
मैं अपने हिस्से का प्यार लेकर
तुमसे मिलने आऊँगी!
तुम्हारा 'कम' भर दूँगी मैं,
मेरे 'ज्यादा' को हम बाँट लेंगे;
मैं सारे फर्ज़ अदा करने
तुमसे मिलने आऊँगी!
एक अरसे से बाँध रखा है
तुम्हारा नाम अपने नाम से,
मैं अपने दिल के जख्म लेकर
तुमसे मिलने आऊँगी!

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22 APR 2023 AT 21:11

I stood still today,
facing my reflection.
I could barely speak,
maybe the mirror had objections,
Cause what I heard
was a sheer shout~
As if a bouquet of red carnations
going with a shroud!
The scars and the ends,
The scratches on my bends;
I could feel those nails
ripping my body off,
The scent of the evil
descending right from the top!
The more he leaned forward,
his breathe choked me;
I was lying naked,
what they call 'being free' !?

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1 APR 2023 AT 17:56

किस्मत की जीत पर
तारीफ तोहफ़े की होती है,
गर नवाजिश अपने नाम की चाहिए
तो दाव मेहनत पे लगाया करो!

मुकाम बढ़ने लगे गर
तो साथ जिम्मेदारियां भी आती हैं,
छिपने की नीव लेके
बाजी खेलने मत आया करो!

तारे टूटें भी जब
तो ख्वाइश पूरा किया करते हैं,
एक छोटी सी फतह को
जग जीतना मत बताया करो!

और गर उम्मीदें तुम्हारी
गिर ही गई हों 'आस्था',
तो इतनी ख्वाइशें लेके
मजाल छोटी मत लाया करो!

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7 MAR 2023 AT 23:22

किसी की सहमति से जब सहमत न हो,
तो रुक जाए करो!
भविष्य देखने की जब जहमत न हो,
तो रुक जाए करो!

जरूरी नहीं है हरदम जमाने के साथ चलना;
जमाना दौड़ता रहे तुमसे मेहनत न हो,
तो रुक जाया करो!

कई दफा खुदगर्ज बनना पड़ता है;
पेचीदा खयालों में जब रहमत न हो,
तो रुक जाया करो!

हर रोज एक नया आगाज होता है;
सूरज ढलते ढलते गर कयामत न हो,
तो रुक जाया करो!

जमाना लाख खामियां ढूंढ ले सबमें;
पर जो तुम्हारे नाम से उसमे दहशत न हो,
तो रुक जाया करो!

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