घर की याद आती है
पर घर जैसा हाल नहीं है
जिन्हें सोचते हैं, याद करते है
वो हर कदम पे हमारे साथ नहीं है
घर से पापा का बुलावा आता है
पर उनसे तर्क वितर्क करना अब स्वभाव नहीं है
सोचूं उन्हें तो नम हो जाती हैं आँखें
पर उनसे मिल पाऊ अब ऐसे रिश्ते और भाव नहीं है
करती है मम्मी याद, पापा लेते हैं दिन में चार बार नाम
पर सुकून से एक छत के नीचे रह सकें इतने भरे हुए घाव नहीं है
खुली सांस की क़ीमत चुक रही है किश्तों में
मेरे रिश्तों से हर एक पल काटा जा रहा है!
सब महिनेभर की थकान लिए लौट जाते हैं घर
मैं बस "घर की याद आती है" के आंसू बहा लेती हूं।-
👀Answer if you can~ Why people are so stupi... read more
some days will be unkind
you'll want to forget
but stay for those days
that are worth more
than all the rest.-
नहीं जानती की तुम मेरे क्या हो
शायद हो मीत या शायद सखा हो,
मिल जाती हैं सारी खुशियाँ
जिसमें अनमोल सा शायद तुम वो लम्हा हो,
कह लेती हूँ तुमसे व्यथा दिल की अपनी
मां के मन सा कोमल तुम वो जज़्बा हो,
नहीं है चाह तुमसे और कुछ भी पाने की
अनजाना अनसुना सा जैसे कोई रिश्ता हो,
बंध गया हैं एक डोर में मन मेरा तुझसे
जैसे नेह से भरा ये बंधन प्रेम पगा हो,
अदभुत सा एक रिश्ता है बीच में हमारे
जो न पहले कहीं देखा हो न ही सुना हो!-
रेतीली हवाओं के
मौसम सी मैं
सर्द रातों की कम्पन हूँ
जो साँचा मिले
ढल जाउ उसमें मैं
पानी से भी बढ़कर
मन मेरा
झरना मिले तो
बह जाऊ
समुद्र आये तो
ठहर जाऊ .. !-
कुछ कर जाने का ..
ज़रिया है तू !
बहती नदी सा दिखता है ..
पर ख़ुद में ..
एक दरिया है तू !
ज़रा देख तो सही ..
एक झलक संघर्षों की !
जो दृढ़ संकल्प कर पानी में आग लगा दे ,
वो रचना है तू !
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