QUOTES ON #MAJBURI

#majburi quotes

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9 MAY 2020 AT 12:50

उसके सपने को तो तुमने छोटा बता दिया
पर कभी उसकी मजबूरी के बोझ को न नाप सके
उस जमीन के टुकड़े को तो तुमने अपना बता दिया
पर कभी उसके हिस्से के आसमान को न माप सके

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23 MAY 2020 AT 19:23

Apni majburi un hi logon ko btaani chahyee
Jo aapko smjhe naa ki aapko smjhaaye

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19 APR 2020 AT 16:43

मजबूर

आज इन्सान कितना मजबूर है,
बिना बेड़ियों के अपने ही घर में क़ैद है,
चाहकर भी सबसे दूर है,
सबके साथ होकर भी कितना अकेला है,
आज इन्सान कुदरत के आगे मजबूर है,
अपने ही घर में क़ैद है.

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5 DEC 2021 AT 16:12

एक बेटे की चाह में कई बेटियां दुनिया में आ जाती है।
फिर भी इंसान तेरे अंदर,बेटे कि चाह मिट ना पाती है।

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तूने भी पलायित कर दिया हमें...

जो पटरियां हमने बिछाई थी, दिन और रात
आज उन्ही ने अपनो से, अलग कर दिया हमें।
लम्बी सड़के, चौड़े फुटपाथ, हमने बनाए थे रातो-रात
आज उन फुटपाथों से भी, दर-बदर कर दिया हमें।
बड़ी-बड़ी इमारतें बना, शहर तेरा बसाया था गजब
आज उसी शहर ने, घरों से बे-दखल कर दिया हमें।
जिनको हमने ही पहनाया था, अमीरी का ताज
आज उन्ही अमीरों ने, भिखारी सा कर दिया हमें।
पिकनिक मनाकर लौटे थे जो, चंद आसमानी जहाजों से
आज अपने ही स्कूलों में, भेड़-बकरी सा कर दिया हमें।
गरीबी थी, मज़बूरी थी, क्यों शहर में ही मजदूरी थी
अब देख जरा, हां, ये शहर,
तूने भी पलायित कर दिया हमें।

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8 OCT 2020 AT 10:45

Muhabbat tabhi karo jab usse nebha
Sako..
Majburiyo ka sahara leker..
Kisi ko chodna wafadari nahi hoti..

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4 JAN 2022 AT 10:54

मजबूरियां दस्तक दिए बैठी है राहों में

जरा भी फिसले तो जकड लेगी अपनी बाहों में
🖤🖤

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17 OCT 2020 AT 0:00

Jaruri hai

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23 FEB 2020 AT 20:09

कर आई छलनी मैं ख़ुद को हज़ारों में
बिक गया जिस्म मेरा शरीफों के बाज़ारों में!

हो मेरा ईमान ही जिस्म बेचना गोया
बँट रही हूँ बादशाह फिर उनके सिपहसालारों में!

बरगला मत जाना तुम बाहर पहरे देख कर
पर्दे तो बस यूँ ही पड़े हैं मेरे घर के दीवारों में!

हो अगर तो निकाल लूँ पल मुहब्बत के लिए
कट जाता है वक़्त मेरा निकम्मों और अवारों में!

अब न होता पार दरिया कितने ही हैं भँवर इसमें
मुद्दतें गुज़री हैं मेरी बैठे इसी किनारों में!

थक चूंकि हूँ इल्तिजा कर अपने उस ख़ुदा से मैं
देखना है क़ुव्वत अब ,क्या है टूटते सितारों में!

थकाया न कर हाथों को उठाकर मेरे वास्ते
होता नही असर दुआ का मुफ़लिसों और बेचारों में!

अब न काम आएगा 'ज़ूबिया' तुझे तेरा हुनर
फूल टूटते हैं इश्क़ में और चढ़ जाते हैं मज़ारों में!

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10 JUL 2017 AT 11:01

कि उनके हाथों की मेहंदी आज हमारी मजबूरी को बयाँ करती है..!!

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