वो मजबूरीयो से घिरा है,
वो मजबूर बहुत है,
वो डरता नही मोहब्बत से,
इसलिये मशहूर बहुत है..!!!-
लफ्जों में खता रख, गले का हार नहीं हूं.
जीत की तलब हूं, किसी का यार नहीं हूं
उम्दा गजब शायरी ये हुनर कहां किसी का.
ये लफ्ज सब रहमत के, मैं कोई सार नहीं हूं.
जमीर से ईमां तक बहुत सौदे किये तुमने
सौदा मैं भी हो जाऊं गर कोई बाजार नहीं हूं.
फूल लेके मिलने जुलने मत आया कर दोस्त .
ज़िन्दा हूं अभी बशर मरा कोई मजार नहीं हूं.
शादी इश्क की गम मोहब्बत का नाच उठा .
शौक से नाचता हूं पर कोई नाचार नहीं हूं.
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मेरा कसूर बस इतना था...
मजबूरी मेरी गरीबी थी
उम्र थी पढ़ने की साहब...
पर भीख मांगने को मजबूर था ..
करु तो करु क्या साहब ...😞
सवाल जो पेट का था ...😥
(( That's deep pain ))😥-
वो मशहूर Tha बहुत
और उसे अपनी मशहूरी पर गुमान Tha...
Main मजबूर था बहुत
और मैं अपनी मजबूरी से परेशान Tha...
वो चाहता Tha
कि मैं उसकी जी-हजूरी करूं Janab...
पर जी-हजूरी के Naam पर
हमारे लहू में बारूद और आंखों में श्मशान Tha...-
क्या कोई किसी को हक़ीक़त से जानता है
मुझे लगता है अपनी जरूरत से जानता है
दिल-ए-मासूम के ज़ख्म किसको दिखते हैं
यहाँ तो ख़ुशी हर शख़्स सूरत से जानता है
उस इंसान से रिश्ता हरगिज़ नहीं बेहतर
जो तुम्हे, तुम्हारी मिलकियत से जानता है
ऐसी पहचान से गुमनामी कई गुना अच्छी
ग़र कोई भी तुम्हे बस नफरत से जानता है
उसकी ख़ुशक़िस्मती का कहो, कहना क्या
कोई उसे, उसकी नर्म आदत से जानता है
मैं भी ख़ुशनसीब हूँ, पर चलो तन्हा ही सही
पर मुझे हरकोई मेरी लिख़ावट से जानता है
एक पहचान है मेरी जो ता-उम्र नहीं बदली
यार मुझे आज भी मेरी आहट से जानता है-
तेरी आंख में आंसू ना देख सका में
सारी रात चैन से ना सो सका में
तेरे इंकार की वजह जान गया
तेरी मजबूरियों को मान लिया
अपने दिल का हाल अब बयां नहीं होगा
अपने जज्बातों को अब बांध लिया
खुश रहे तू जहां भी रहे उस रब से दुआ है मेरी
आज तेरी खुशियों के लिए
एक मन्नत का धागा बांध दिया-
Ishq ke alawa or bhi gum hai zamane me....
Hmse pucho jaan nikal jati hai Lauki ki sabji khane me.....🥴-
छोटी-बड़ी मजबूरियां नहीं।
बल्कि
ज़्यादा-कम प्यार
दूरियों का सबब बनता है।।
वरना
देखा नहीं तुमने?!!
रहने वाले तो पतझड़ में भी साथ
निभाते है।
और जाने वाले सावन में भी
अपने नहीं हो पाते।।-
मजबूरियां मजदूर की...
दिखती क्यों नहीं..
पैरों में छाले!
और पेट भी है खाली
हजारों मीलों का सफर यह
चल रहा मजदूर राही!
किसी मां की गोद में बच्चा
तो किसी मां की कोख में।
मजबूरी इससे ज्यादा और
क्या होगी नसीब में !!
हम तो आज जा रहे हैं।
अब वापस ना आएंगे
जो दर्द-ए-दिल तब झेल रहे
दोबारा ना झेल पाएंगे।
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