ना किया कदम पीछे जब,
बात जज़्बात पर आई थीं
तोड़ दिया घमंड उनका,
जब बात साहस पर आई थी
हज़ारो से बदला लेने को,
जब तलवार हाथ उठाई थी
किया खून तलवारो से,
ना जाने बल कहा से लायी थी
जो भारत माँ की आन बचाई थी,
वो हमारी प्रेरणा महारानी
-लक्ष्मी बाई थी
Surbhi Sonali-
अंग्रेज़ी उस फ़ौज में जिसकी खौफ़ बड़ी ही भाड़ी थी
ख़ूब लड़ी मर्दानी वो लक्ष्मी-बाई झांसी वाली रानी थी
अश्व सवार भवानी स्वयं निज पीठ शीशु को बांधी थी
रक्तपात मचा था भयंकर दुश्मन के लिए वो आंधी थी
मातृभूमि की रक्षा को लिए नारायणी भृकुटी तानी थी
वीरों की भूमि पर वीरांगना यह शत्रु ने भी बखानी थी-
#Peshwa Nana Sahib, Adopted Son of PeshwaBajiRao II #Lead 1857Revolt in Kanpur
"नाना साहेब" या "पेशवा नाना साहेब" थे ब्राह्मण, पर गोद ले लिए गए,
इनके बचपन से ही अधिकार, अंग्रेजों द्वारा छीन लिए गए,
जब तृतीय अंग्रेज़ी मराठा युद्ध, के बाद अंग्रेजों ने बाजी राव II को बिठूर (कानपुर, उत्तर प्रदेश) निकाला दिया,
बाजी राव ने बिठुर में आ अपना बचा जीवन गुज़ार दिया,
नाना की लड़ाई अंग्रेजों से ये थी, कि उन्होंने इन्हे बाज़ी राव का उत्तराधिकारी मानने से किया इंकार था,
उत्तराधिकारी होने के नाते इनका पेंशन पर अधिकार था,
ये ही वे नाना थे, जो थे "रानी लक्ष्मी बाई" के बचपन के सखा,
कानपुर में 1857 की क्रांति का बीज इन्होंने ही रखा,
इन्हीं की सेना में थे "तात्या टोपे" और "अज़ीमुल्ला खान" जैसे मंत्री,
रानी, टोपे ने मिलकर "ग्वालियर" में दी थी इन्हें "अपने पेशवा" होने की स्वीकृति,
जून 1857 में एक बार इन्होंने, पूरे कानपुर पर कब्ज़ा कर डाला था,
अंग्रेजों को भी वहां से मार भगा डाला था,
बाद में अपनी सेना के बल पर अंग्रेज़ों ने सब हथिया लिए,
नाना फरार हो गए तब, और जंगलों में गुमनामी में प्राण गंवा दिए...
...ऐसे महान व्यक्तित्व को नमन...-
मेरे श्रेष्ठ पूर्वज
मेरे परम पिता
मेरे भरत खण्ड के नायक
मेरे भारत के योद्धा
आप सब नमन करो स्वीकार
कर्तव्य मार्ग पर चलते हम तुम करो उपकार
सपनो का भारत युगो युगो बाद हम करें स्वीकार
है आभार आपका है जीवित हमारा आधार,करो और उपकार
जो ठान लिया है मन मे वो हमारा करो आप स्वीकार-
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी
वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई को शत शत नमन।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झांसी वाली रानी थी।-
@authorpayalsawaria #writershaani
महाभारत के योद्धा अर्जुन को तो सिर्फ महाग्रंथ गीता के माध्यम से भारतीयों ने जाना परंतु सन्1857 की क्रांति में झांसी के लोगों ने दुश्मनों के दांत खट्टे करती अर्जुन से बडी़ योद्धा रानी लक्ष्मीबाई को साक्षात् देखा जो कि अंग्रेजों के अनुसार 'इकलौती मर्द'थी।-
वो वीर वसुंधरा की
दिव्य ज्योति है,
वो आज भी हृदय में
अमिट खड़ी है,
बलिदान किया सर्वस्व जिसने
वो बलिदान-मूर्ति लक्ष्मी बाई है।
घोड़े पर चाप लगा जिसने
दुर्ग का सीना पार किया,
दुश्मन के खेमे में जाकर
नरभक्षियों का संहार किया,
बलिदान किया सर्वस्व जिसने
वो बलिदान-मूर्ति लक्ष्मी बाई है।
जो अडिग रही अंतिम क्षण तक
जो नारी लड़ी दुर्गा बन कर,
बलिदान किया सर्वस्व जिसने
वो बलिदान-मूर्ति लक्ष्मी बाई है।
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ताकत का जो प्रतीक है।
बरसों तक जो सीख है।।
दुश्मन से जो निर्भीक है।
आई आज वही तारीख है।।
कद्र चलो इसकी जानते है।
आदर्श थे जो उन्हें पहचानते है।।
वीरांगना ने जन्म लिया था जब।
झाँसी की रानी जिसे कहते सब।।
दुश्मनों के लिए जो सदा सीख थी।
उनके जन्म की ये 19 तारीख थी।।
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जम्बूद्वीप की नारी थीं वो,
मातृभूमि को प्यारी थी वो।
स्वाधीनता,सम्मान की खातिर,
दुश्मनों को ललकारी थी वो।
रणयोगिनी के शौर्य के आगे,
गोरों की रूह कांप जाती थी।
मच जाता था हाहाकार हर-तरफ,
लक्ष्मीबाई जब तलवार उठाती थी।
इतिहास सदैव स्मरण करेगा,
उनका यह अतुल्य बलिदान,
पुण्यतिथि पर देश कर रहा,
उनको कोटि-कोटि प्रणाम💐
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पीठ पर बेटे को लाद उसने तलवार चलाई थी,
वो एक ऐसी माँ थी जिसने भारत माँ की लाज बचाई थी|
काट दिए अन्ग्रेजो के सर उस माँ ने अपनी तलवार से,
झुका दिया अन्ग्रेजी तिरंगा भारत माँ के सम्मान मे|
देश मे स्वतंत्रता की ज्वाला उस रानी माँ ने जगाई थी,
तुट गई अन्ग्रेजी बेडिया की ऐसी उस माँ की ललकार थी|
रह सकती थी आराम से ग्वालियर और झाँसी के किलो में,
पर उस मनीकरनीका को आग लगानी थी अन्ग्रेजी सल्तनतो मे|
नाम लक्ष्मी था पर कार्य दुर्गा माँ के जेसे किये,
धन्य है ये देश जिस्मे ऐसी माँ ने जन्म लिये |
अंतिम सांस तक लडि वो नही उसने दिखाई पीठ है,
यही सबसे बडी देश हित में लडी गई जंग में जित है|
प्राण न्योछावर कर दिए उस माँ ने इस देश के लिए,
भारत माँ ने भी उसे गले लगाया उम्र भर के लिए
ऐसी मर्दानी आज तक नही हुई है,
जो एक माँ हो कर भी भारत माँ के लिए लडी है_
पीठ पर बेटे को लाद उसने तलवार चलाई है,
वो एक ऐसी माँ थी जिसने भारत माँ की लाज बचाई है|-