Gaurav KNP   (गौरव पंडित)
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लेखन,चित्रकारी,डिजिटल चित्रकारी,गायन |
संपर्क सूत्र-9044489254
Joined 17 March 2020


लेखन,चित्रकारी,डिजिटल चित्रकारी,गायन |
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Joined 17 March 2020
3 DEC 2022 AT 22:56

पर सेवा धर्म यस्य, यस्य सरल मनः।
आत्मसंयमी क्षमादानी,स: ब्राह्मण देवता।।

दीनबंधु रिजु: वाणी, दयालुश्च सज्जना।
नौ गुणी परम् दाता, स: ब्राह्मण देवता।।

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2 OCT 2022 AT 20:19

क्यों तेरे उत्सव भी फीके छलावे लगते हैं,
ऐ शहर ! क्यों तेरी धूल भी छल का चूरन ।
बता तनिक, क्यों पवन भी मृत सांस लगती है,
ऐ शहर बता क्यों ...

देखी है मैंने तेरे सड़क किनारे सूखी माटी,
देखी है ठूंठ उलझी हुई बेलों की पाती ।
ऐ शहर ! क्यों आग भी तेरा गीला धुंआ लगता है,
ऐ शहर बता क्यों...

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28 AUG 2022 AT 18:44

ग़लत न था मेरा यूं उगना,पनपना,
शाखों में हरे-हरे लहू का फड़कना,
न ग़लत था पत्तों पर ओस का रुकना,
न ग़लत था फलों भरी डाली का झुकना।

ग़लत था तो बस तेरी आरी चलाना,
कटे-कटे जिस्मों की क्यारी बनाना,
हाँ ग़लत न था मेरा यूं उगना,पनपना,
शाखों में हरे-हरे लहू का फड़कना ।

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12 JUL 2022 AT 18:03

घुल जाऊँ उस ठौर के कण-कण में,
लिपट जाऊँ हर ठहरे कंकड़ में ।
जब जलूं आख़री मुक़ाम के लिए,
बिखेर देना राख मेरी मेरे घर में।

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10 JUL 2022 AT 13:59

दुनिया की दोपहरी में ,
तपता मैं आज ।
हवाओं से लड़ता जैसे,
रेत का जहाज।

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29 MAY 2022 AT 20:11

कटे विलक्षित दुःख की भांति,
भीगे वसन सुखाती है,
पंक्ति-पंक्ति क्यारी-क्यारी,
जल सा स्वांग रचाती है,

ठूँठ हुई उपशाखा जैसे,
पवन से जान लड़ाती है,
आहत होकर जन अनीति से,
धरणी क्षीण हो जाती है,

फिर भी कितना बल है देखो,
मृग मानव की साथी है,
त्याग अनूठा करती वसुधा,
फिर भी माटी माटी है।

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28 MAY 2022 AT 23:38

किसने धन- अर्जन पर तोला,
किसने मन्द मुखर विष घोला,

विष पूरित निर्जीव भई डाली,
क्षीण भई प्राणमय हरियाली,

अग्नि अगन-आँगन में फैला,
दूषित देह अंतर्मन हुआ मैला,

किसने द्विविध कथन है बोला,
किसने खोटा रुक्का खोला,

चित्त ईर्ष्या-भीत न बन पाती,
प्रीत अगर दृढ़ता से इठलाती,

किसने जीवन शक्ति पर तोला,
किसने मन्द मुखर विष घोला।

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27 MAY 2022 AT 20:49

क्या गुमां है तुझे तेरे ओहदे पर,
तेरे बेपरवाह रवैये पर,
तेरा फिक्र भी है बेफिक्री सा,
तेरे शब्द कटीली नोकों पर।

तुझे भ्रम सा है तू सब कुछ है,
तुझे वहम है बस तू ही तू है,
तुझे लगता है करता तू है,
बाकी बैठे तेरे कर्मों पर।

है वाणी में कटुता तेरी,
तुझे लगता है, है इज्जत तेरी,
तू आहत करता हर मन है,
आँख चढ़ी तेरी माथे पर।

कब समझेगा ये तेरा भ्रम है,
घायल तुझसे हर जन है,
जो समझेगा तो जानेगा,
उनका अपना भी जीवन है।

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16 MAR 2022 AT 16:45

तू सहती रही,
तू तड़पती रही,
बिछुड़न का दर्द लेकर,
तू बसर करती रही।

तू माँ थी,
तू पत्नी थी,
जो जुल्मों में भी,
आग सा तपती रही।

दर्द देखा नहीं जो था कभी,
उस दर्द के गले लगती रही,
दो हिस्सों में बँट के भी,
वजूद के लिए लड़ती रही।

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1 MAR 2022 AT 23:35

माँ सीता-श्री हनुमान संवाद
(लंका)

हे जननी यह दूत अति भूखा।
यात्रा करि मम ग्रीवा सूखा।।
आज्ञा हो सुंदर फल खाऊँ।
रसास्वादन करि तृष्णा बुझाऊँ।।

सीता तव कहेहु हनुमाना।
निगरानी करे दैत्य बलवाना।।
अनुमति वैदेही कपि को दीन्हा।
जय उद्घोष रघुनाथ की कीन्हा।।

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