साहब,
आपको "किसान" एक मामूली इंसान लगता हैं, ना
पर हकीकत तो यह हैं कि
यह इंसान "जिंदगीभर" अपनी "जमीं"
और "जमीर" को बंजर नहीं होने देता।-
साहब, इस "ऊँटगाड़ी" ने भी
अब आस छोड़ दी हैं,
फिर से "चलने" की,
क्योंकि इसे चलाने वाला
वो "किसान" अब "बूढ़ा" हो गया हैं।-
टूटा - फुटा घर मेरा, बस दो वक़्त कि रोटी हैं
हम बुरी हालातों से लड़ने वाले किसान,
हमारी जिंदगी बहुत छोटी है !!!-
चीर कर जमीन को वो उम्मीदो को बोता है !
उधड़ी हुई अर्थव्यवस्था को वो तन से सिता है !
वो अपने लिए कहा वो तो देश के लिए जीता है !
वो एक किसान है साहब चैन से कहाँ सोता है !!-
ना हिंदूऔं से, ना मुसलमानों से।
ना गीता से , ना कुरानों से।
ना मंदिर की आरतियों से,
ना मस्जिद की अजानों से।
ना खुद अपने ही खुदा से,
ना औरों के भगवानों से।
ना नए साहिब-ए-मसनद से,
ना सत्ता की पुरानी दुकानों से।
तकलीफ देखकर है लेकिन
सरहद पर मरते जवानों से,
और खेत में मरते किसानों से।-
पूरे देश को चलाता है गुमनाम शान है,
प्रकृति की मार खाकर भी पूरे देश का पेट भरता है।
हां! वो एक किसान है।
वो कहते हैं कि देश का विकास हो रहा है,
पर किसान मेरे देश का आज भी खून के आंसू रो रहा है।
गरीबी और महंगाई ने किया है उसे कुछ इस कदर चूर,
मौत को गले लगाने को आज है वो मजबूर।
भूखे पेट दिन-रात भाग रहा है,
सुबह और रातों में भी जाग रहा है।
बेईमानों के पेट भरे हैं,
खुद मेहनत करने वाला आज भीख मांग रहा है।
हमारा पेट तुम भरते हो,
सपने जो तुम्हारे हैं क्या तुम उन्हें पूरा करते हो?
झूठ है फरेब है मक्कार है ये दुनिया,
सच कहूं तुम्हें तो बेकार है ये दुनिया।-
एक शब्द इन किसानों के लिए बताइए?
जिन्होंने हमारी आन बान शान
भारत माता के राष्ट्रीय ध्वज को फेंकने की हिम्मत की!
😡😠-
समझ जाओगे किसान का दर्द,
एक बार खेतों में हल चलाकर तो देखो।
किसी जमीन के टुकड़े में,
कभी अनाज उगाकर तो देखो ।
कभी जून की धूप में तो कभी दिसंबर की जाड़ में,
एक बार खेतों में जाकर तो देखो ।-
हम लिखते और सुनते रह गये किस्सा दर्द का.
पर कहानी लिखने वाला तो कोई और निकला-
कच्चे घर से पानी गिरता है और बहुत कुछ हुआ करता है।
किसान ही है जो फिर भी, बारिश के लिए दुआ करता है।।-