इससे पहले कि खामोशियां बढ़ें दर्मियान
आओ हम एक बार फिर से झगड लें ।।-
अजीब सी खामोशी है,
अजब सी ये चार दीवारें...
अजीब सी बंदगी है,
अजब सी इस रिश्ते की मुस्कान...
अजीब सी है ये नज़दीकियाँ,
अजब सी इनकी दूरियाँ...
अजीब सी है ये कश्मकश,
अजब सी ये ख़ामोश रात...
अजीब सी खामोशी है,
अजब सी ये चार दीवारें...-
साँसों को छलनी, जिगर को पार करती है
ख़मोशी भी, बड़े सलीके से वार करती है
-
जनाब,
अल्फाजों को पढ़ने
के दीवाने तो हजार है,
मगर तलाश तो उसकी है,
जो मेरी खामोशियों को
पढ़ने का हुनर रखता हो !!-
खामोशियाँ अक्सर कलम से बयां नहीं होती,
अंधेरा दिल में हो तो रौशनी से आशना नहीं होती,
लाख जिरह कर लो अल्फाजों में खुद को ढूंढने की,
जले हुए रिश्तों से मगर रौशन शमा नहीं होती !-
1: ज़ख्म हो या रकम भरने मे वक़्त लगता ही है.
2: गरीब की डोली नहीं जनाजा उठता है.
3: मै उससे सही हुं हर इंसान इसी भ्रम मे जीता है.-
लफ़्ज़ों की कमी तो कभी भी नहीं थी जनाब,
हमें तलाश उनकी है जो हमारी ख़ामोशी पढ़ लें ।-
इश्क़ के इस शोर में,
तेरे होने की बेकरारी ना बढ़ जाए।
चुप हूँ गर मैं तो इसलिए,
मेरा अक्स तेरे लिए परेशानी न बन जाए।
खुदा की तराशी हुई मेरी परी है तू
जिसे मेरे नाम की आँच आने से पहले,
उड़ने के लिए सुनहरे पंख लग जाए।
चुप हूँ गर मैं तो इसलिए,
बात दिल की जमाने मे सरेआम न हो जाए।
और तेरे कदम में बेड़ियों के साथ
आज़ादी को सलाखें ना मिल जाए।
खुदा की इनायत से मिले ये इश्क़ का सफ़र
तेरी यादों में हमेशा के लिए अभिशाप ना बन जाए।
चुप ही रहूंगा मैं बस इसलिए....-