लाख नूर सही, कितनी ही खूबसूरत हो
लड़की अपनी माँ से ज़्यादा सुंदर कभी नहीं होती-
बिंदिया, लाली, चूड़ी सब सजाया
तेरे सिंदूर का ऋंगार ही बाक़ी है
तेरे रुद्र की माला की सुगंध बाक़ी है
तेरे चरणो का स्पर्श ही आख़री है
मेरी चुनरी तेरी आस में लहरायी है
आज मेरे शिव आएँगे ❤️-
हमने कुछ ख़्वाहिशें कम की थी
तो तुम थोड़ी ज़िद्द और करने देते-
दहलीज़
गुजरते हो जब तुम इस दहलीज़ से
सांसें रुक सी जाती हैं
ना जाने क्यू ये आँखें अटक सी जाती हैं
कैसे बताएँ कितने दिन से राह देख रहे थे
मस्रुफ़ इतने थे तुम की आए ही नहीं
अब उस आवाज़ की बस खनक बाक़ी है
जो फिर आओ कभी तो बता देना
दिल को मरहम लगाकर रखेंगे
इसमें तुम्हारी जगह बचाकर रखेंगे ❤️-
कोई ख़ास तस्वीर भी नहीं,
कोई ऐसी एक बात भी नहीं
याद तो रोज़ आती है
पर ऐसी कोई तक़दीर ही नहीं
जिसमें आप मेरी तस्वीर नहीं
आख़री बार की बात याद है
उस दिन की पूरी तस्वीर याद है
बोला था आपने साथ में खाओ
क्या पता था ये आख़री मुलाक़ात है
पिरो रखा है आज भी उस दिन को,
जिस दिन आपने कहा बस
“यही आख़री मुलाक़ात है”-
कठपुतली से हैं हम
ना जाने किसके हाथ में डोर दे बैठे हैं
वो ठोकर भी खिलवा रहे हैं
दवा भी नहीं दिलवा रहे हैं
हकीम का पता जानते हैं हम
पर ना जाने उनकी डोर से क्यू रुक जाते हैं
उस मंजर वो ज़रा प्यार दिखलाते हैं
दर दर ठोकर तब भी खिलवाते हैं
कठपुतली से हैं हम
ये मिसरा खुद्को रोज़ सुनाते हैं
फिर भी उलझे हैं उनके वादों में
ना जाने ये दर्द इतने क्यू भाते हैं
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दूर किसी साहिल से आगे,
बहुत आगे जाना है तुम्हें
मामूली हैं ये लोग,
मामूली इनकी बातें
कहाँ जाना है उसको सोचो,
दूर उस ओर है तुम्हारी मंज़िल
खून पसीना चाहे बहे,
वहीं दूर तुम्हें लहराना है
आज जो तुमको ज़िद्दी, पागल कहते हैं,
कल तुम्हारे जुनून को सलाम करके जाएँगे
ये लोग हैं जनाब ये तो कुछ भी कहते जाएँगे,
ये लोग हैं जनाब ये तो कहते ही रह जाएँगे
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हमें तो इत्तेलाह ना थी की कश्मकश क्या है,
सोचने बैठे तो सौ ग़म बेनक़ाब हुए
ख़लिश ख़लल मचाती है,
एक हल्की सी मुस्कान सब भुला जाती है
इसी जंजाल में उलझे हैं सब,
एक ही तालाब में डूबे हैं सब..
कायी जो तुमको गिराती है,
हिम्मत भी तो कुआँ पार कराती है
कश्ती तो हमेशा किसी ओर जाएगी,
लहरें जो उसको हमेशा धक्का लगाएँगी..
मत सुन इस कायर समाज की आवाज़
बुलंद की आवाज़ समाज को हमेशा झुकलाएगी
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पन्नो की सरसराहट से नींद टूट गयी,
ना जाने ये इतनी कच्ची कब हो गयी
किताबों के पन्ने मानो बुला रहे हैं
कुछ कोरे भी हैं..
मुझे कहते हैं मैं अपनी कहानी सुनाऊँ
अब इसको कौनसे क़िस्से बतलाऊँ
ये तो खुद क़िस्सों से बनी है
इसको क्या पता मेरी ज़िंदगी में कितनी नमी है
किससे जो सुनाएँ
तो आँखें चमक उठती हैं
और फिर एक ही पल में नम हो जाती हैं
इन आँखों की अब स्याही फैलेगी
ये किताब भी काली पड़ जाएगी
भोली हैं ना ये आँखें
ये तो सब बयान कर जाएँगी..
ये तो सब बयान कर जाएँगी..-