किसी की हो कर भी ना होना...
इतना आसान भी नही "काशी" होना!!!-
काशी के घाट पर तुमको देख ऐसा लगता है
मानो इश्क़ खुद चलकर गंगा में उतरने आया हो-
तलाश रहे जगत मे उसको वो तो सर्वव्यापत है
सूरत उसकी मुझको भाई वो मेरे भोलेनाथ है
नगर बहुत पुराना बसते जहाँ शिव साक्षात है
काशी में कहीं गहरे छुपे हुए बाबा विश्वनाथ है
महादेव वाराणसी का तो जन्म जन्म का साथ है
तीनों नदिया मिले जहाँ पे संगम का वो घाट है-
सोने का पानी है वो जैसे,
मैं चांदी की तार,
काशी की ज़री सा होगा,
हम दोनों का प्यार।
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तुम बिल्कुल बनारस जैसी हो,
गलियों सी उलझी हुई पर थोड़ी सुलझी हुई,
गंगा की लहरों सी लहराती हुई पर अस्सी घाट सी पावन,
तुम बेहद खूबसूरत हो।-
Teri banaras ki galiyo me ghum hota to thik tha,
Naa jaane q tere pyaar me ghum ho gaye hum🖤!!
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मैं,"अस्सी" से जब शुरू करू..
तुम "दशाश्वमेध पर खड़ी मिलो..!
मैं गंगा की लहरों सा जब बहा करू..
घाटों सी सजी तुम खड़ी मिलो..!!
मैं "गदौलिया" के उस नुक्कड़ सा..
जब "लंका" के जाम में फसा रहू..!
बनके तुम "तुलसी की चौपाई" सा..
बस "विश्वनाथ मंदिर" ही लिए चलो..!!
इस व्यर्थ जगत के प्रलापो से हटकर..
"महादेव" का जब मैं ध्यान करू…,
तुम संग मेरे अटूट बंधकर,
उस दिव्य स्वरुप में रमे चलो..!!
मैं,हूं प्रसाद उन महादेव का..
"शिवरात्री" का प्रसाद जैसे "बनारस" है..
बस यही समझकर तुम मुझको…
लोटे में भरकर पिये चलो..!!
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बनारस की सादगी से सुकून आए तो क्या करे,
चौक की गलियों में खुमार छाए तो हम क्या करे।।
अपने प्यार के लिए आवाज़ न की बुलन्द कभी,
सिर्फ़ उनके नाम से ही इतना निखार आए तोहम क्या करे।।
घाटों पर कुहासों के असर की हमें ख़बर ही नही,
वहां के चाय से ही बुखार ठीक हो जाए तो हम क्या करे।।
बनारस के नाम से ही संभल जाते है हम
इस सादगी पे भी सभी को प्यार आए तो हम क्या करे।।-
रूबरू हो कोई काशी से तो हर लम्हें में सूकुन है
घाटों पर उमड़ रहा आजकल नया नया ख़ून है।।-