MAYANK TRIPATHI  
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कुछ ज्ञात नही..😂
Joined 28 March 2020


कुछ ज्ञात नही..😂
Joined 28 March 2020
22 APR 2024 AT 13:02

" कुछ विक्षिप्त अवस्था में थी पड़ी
यूँ यहाँ,वहाँ,जहाँ ,तहाँ थी चली।

ओज, प्रसाद के द्वंद्व में पड़ी
माधुर्यता की खोज में थी चली।

सच है उस राह में मुश्किलें है बड़ी
किंतु अंधकार उस पार आशा की प्रकाश है घनी।

बस इसी सकारात्मकता का प्रवाह लिए ,
सच है मैं हूँ वीरान चली।

मीलों रास्तों का सफर शुरू हुआ,
कुछ था, कुछ है आगे पड़ा हुआ।

भीषण वेदनाओं से लड़ता हुआ -
मन, अपनी ओर चला।


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11 JUL 2021 AT 23:01

कुछ "दर्द" मिला,कुछ "साज" मिला..!
जो ना माँगा,"बेपनाह" मिला..!

कुछ "सुर" बिखरे,सब "रीत" मिले,
जब "सुर" में थे, संसार मिला..!

कुछ अपने बना कर "लिपटे" थे,
एक दिन उनका भी राज मिला..!

मुड़ कर देखा जब जब मैंने
हर "वफादार",गदद्दार मिला...!

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16 SEP 2020 AT 0:39

है,अफसोस,कि मैं बेबाक हुआ,
नगमों का टूटा साज हुआ,
जिस दहलीज पर,मैं जब टूट गया,
उस दहलीज पर वो आबाद हुआ...!

क्या बाद हुया,ये याद नही,
नासाज हूं मैं,परवाह नही..?
तो बरबाद हो,कि आबाद हो तुम,
ये फर्क कहाँ अब पड़ता है,
उड़ गये परिंदे,अब दूर कहीं,
उनका कोई घर बार नही...!

जो सपनों में था,नीदों में था,
वो रातों को जागा करता है,
अब लोग जो,चाहें कहे भला,
बेबाकी में ही रहता है,
इक टीस लिये,कही दिल में
बस यही वो कहता फिरता है...

.....हैं अफसोस कि, मैं बेबाक हुया,
नगमों का टूट साज हुआ,
जिस दहलीज पर जब मैं,टूट गया,
उस दहलीज पर वो आबाद हुया...!

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11 SEP 2020 AT 22:55

आँखों में सैलाब समेटकर,
चलो यार,उसकी गली घूम आते है...!
वो छलके,भले ना...इन निगाहों से,
कम से कम उसके सजदे में,
खुद को ढूढ़ आते है...!
चलो यार,उसकी गली घूम आते है..!

जिसके लिए,खुद को बिखेर दिया,
उसी गली में, खुद को झिझोंड़ आते है,
यही बायें घूमना था यार,
लोग तो यही बताते है...!
चलो यार उसकी गली घूम आते है..!

जो तस्दीक ही ना हुया,
ऐसे ख्वाब को जरा फिर से जगाते है,
बहुत दिन बीत गये,हँसी खुशी से..
चलो फिर वही जख्म,हरा कर आते है,
चलो यार उसकी गली घूम आते है..!

इतना आसान भी नही होता,
किसी की तपिश मे खुद को निसार कर देना....
खैर छोड़ो,
ये किस्सा किसी और दिन सुनाते है..!
फिलहाल,चलो उसकी गली घूम आते है..!

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10 AUG 2020 AT 21:38

फिर सोचता हूं......

ऐसे तो ना थे हम,
जैसे हुये जा रहे...!
जहन में तस्दीक है,
उसकी निगाहों का दर्द,
फिर क्यूँ, खुशी से मरे जा रहे..!

वो खुशी मैंने,
बस चार कदम चलने के बाद ही छोड़ दी,
सब समझते है,
बड़ी लम्बी उम्र हम,... जिये जा रहे...!

अब कभी..मुस्कुरा दे हम,
तो किसी गलतफहमी में ना रहना....
कम्बखत रिवाज है,
बस उसी तले दबे जा रहे...!

वो आयेगा....मेरे बाद..,
मेरी तलाश में कभी,
बस यही सबब है,
इसिलिये, लिखे जा रहे......!

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8 AUG 2020 AT 12:18

Summer in the hills...
Those hazy days I do remember.
We were running still,
Had the whole world at our feet.
Watching seasons change...
Our roads were lined with adventure.
Mountains in the way....
Couldn't keep us from the sea...
Here we stand open arms.....
This is home where we are......
Ever strong in the world that we made.
I still hear you in the breeze....
See your shadows in the trees...
Holding on, memories never change.

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2 AUG 2020 AT 22:40

मेरी आँखे भर जाती हैं...

उसके कलेजे को खाली देखकर...!


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2 AUG 2020 AT 19:26

हम दर्द लिख रहें हैं....
आह अगर पहुँचे, तुम तक,
तो पढ़ कर बताना.....!

मेरे सफर की साँझ,
बहुत पहले ही ढल गयी...
अच्छा...कही मेरा चाँद निकले,
तो देख कर बताना...!

इस बाजार में, हर तरफ सौदेबाज ही हैं, साहेब.....
कोई मुनाफा गर कम लें,
तो हमें....पता कर बताना...!

महफ़िल लूटने के तमन्ना,
तुमको ही मुबारक हो...
कही जो वीरान दिख जाये,
तो तुम... हमें बेझिझक बताना...!

उसकी गलियों में भी,
इक रोज पीने चला गया था मैं...
ना जाने किसने,साकी से कह दिया,
इश्क का मारा है,
जरा सम्भल कर पिलाना...!

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27 JUL 2020 AT 22:58

ऐसे देखते रहो,इन सितारों को...
कोई अपने जगह से ना हिलेगा.....!
अब जुगनुओं को क्यूँ पकड़ लिया है,
उन्हें पकड़ कर क्या मिलेगा...!

है फकत बस इतना ही...
कि हवा के झोंखे भी,
अब मुझें किसी थपेड़े से लगते है,
तू जब भी कभी आयेगा,
मेरी आँखों में बस दरिया ही मिलेगा...!

बस तो जाता मैं भी,
पर बेबस खुद के बस में,... मैं नही,
ऐसे मे भला कहाँ किसी को बसेरा मिलेगा...!

मैं बाहर यूँ ही,मुस्कुरा देता हूँ,
उस पर तुम क्यूँ हैरान हो......
अरे अंदर झाँक कर देखो साहब,
सब कुछ अधूरा मिलेगा...!

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25 JUL 2020 AT 21:01

ये काफिला भी गुजरेगा,
पर तेरा महकमा ना होगा...!

बस मेरी कैफियत ही पूछ सकोगे,शहर भर में,
पर कही पर मेरा सजदा ना होगा..!

तेरी बाहों के घाव,अब तक हैं सीने में,
साहब... तकल्कुफ का अब दायरा ना होगा...!

तुम भी आना,मैं भी आऊँगा,
उसी घाट के किनारे,
ऐसे तो एक दूसरे का खात्मा ना होगा...!

तेरे लगाये हुए दर्द पर,
कैसे इंतकाम ले लूँ मैं?
फिर ऐसे तो कोई, बेवफा ही ना होगा...!

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