घर के आदमियों को अपनी पत्नियों के साथ अपनी अलमारी और अपना कमरा बाँटते हुए देखापर नहीं देखा औरतों के साथअपनी थाली को बाँटते कभीजहाँ पिता के नामप्याज़, नमक,अचार, गुड़ और नींबू सजी थालीके साथ आयेवहीं माँ के नाम“अभी आयी”, "लाती हूँ""अरे! वो तो खत्म हो गया"और ख़ुद ही उठकर लिया हुआपानी का गिलास आया!!! -
घर के आदमियों को अपनी पत्नियों के साथ अपनी अलमारी और अपना कमरा बाँटते हुए देखापर नहीं देखा औरतों के साथअपनी थाली को बाँटते कभीजहाँ पिता के नामप्याज़, नमक,अचार, गुड़ और नींबू सजी थालीके साथ आयेवहीं माँ के नाम“अभी आयी”, "लाती हूँ""अरे! वो तो खत्म हो गया"और ख़ुद ही उठकर लिया हुआपानी का गिलास आया!!!
-
क्यों नहीं होती हकीकत मुकम्मल ख्वाबों की तरह.. क्या हर ख्वाहिश में "काश" का जुड़ना जरूरी है। -
क्यों नहीं होती हकीकत मुकम्मल ख्वाबों की तरह.. क्या हर ख्वाहिश में "काश" का जुड़ना जरूरी है।
जिन शाखों से पत्ते झड़ते हैउन सूखे शाखों पर मुझसे मिलना नहींये हमारी पहली मुलाक़ात हैदोबारा मिलने का वादा करना नहींचाँद को तकते हुए ये चाँदनी रात भी गुज़र जाएगीजब आँखों में देखो तो गेसुओ में उलझना नहींपलके झुकाकर मुस्कुराना मेरी अदाओं में शामिल हैगर होश खो बैठो तो इश्क़ में पड़ना नहींमैं तो अमलतास हूँ बस आकर्षण कापलाश समझ छू कर मुझे जलना नहीं -
जिन शाखों से पत्ते झड़ते हैउन सूखे शाखों पर मुझसे मिलना नहींये हमारी पहली मुलाक़ात हैदोबारा मिलने का वादा करना नहींचाँद को तकते हुए ये चाँदनी रात भी गुज़र जाएगीजब आँखों में देखो तो गेसुओ में उलझना नहींपलके झुकाकर मुस्कुराना मेरी अदाओं में शामिल हैगर होश खो बैठो तो इश्क़ में पड़ना नहींमैं तो अमलतास हूँ बस आकर्षण कापलाश समझ छू कर मुझे जलना नहीं
….. -
…..
दरवाज़ा छोटा ही रहने दो मकान काजो झुक कर आ गया समझो वही अपना है -
दरवाज़ा छोटा ही रहने दो मकान काजो झुक कर आ गया समझो वही अपना है
ज़रूरी नहीं कि प्यार हमेशा महंगी गाड़ियों और महलों से आएकभी कभी ये पथरीले रास्तों से सादे लिबास में आकरभी आपका दिल चुरा सकता है ज़रूरी नही कि प्यार हमेशा आपको कुछ देकभी कभी ये आपके साथ सपने पूरे करने की भीख्वाहिश रखता है ज़रूरी नहीं कि प्यार आपकी मदद करके आपको अपना बना ले.. कभी कभी ये इतना लाचार होता है कि बस आपके दुःख में साथ खड़े होने का हौसला रखता है ज़रूरी नही कि आप जैसा चाहे वैसा ही प्यार आपको मिलेकभी कभी उम्मीद से परे कुछ ऐसे शख्स मिलते हैजिनसे प्यार होने की कोई गुंजाइश नहीं होती -
ज़रूरी नहीं कि प्यार हमेशा महंगी गाड़ियों और महलों से आएकभी कभी ये पथरीले रास्तों से सादे लिबास में आकरभी आपका दिल चुरा सकता है ज़रूरी नही कि प्यार हमेशा आपको कुछ देकभी कभी ये आपके साथ सपने पूरे करने की भीख्वाहिश रखता है ज़रूरी नहीं कि प्यार आपकी मदद करके आपको अपना बना ले.. कभी कभी ये इतना लाचार होता है कि बस आपके दुःख में साथ खड़े होने का हौसला रखता है ज़रूरी नही कि आप जैसा चाहे वैसा ही प्यार आपको मिलेकभी कभी उम्मीद से परे कुछ ऐसे शख्स मिलते हैजिनसे प्यार होने की कोई गुंजाइश नहीं होती
मुझे अकेले रहने की आदत हैमहीनों अकेले रही हूं मैं,सालों अकेले रही हूं मैं,इसलिए जब उसने कहा "मेरे बिना रह लोगी"?तो इस दिल को ताज्जुब नहीं हुआ -
मुझे अकेले रहने की आदत हैमहीनों अकेले रही हूं मैं,सालों अकेले रही हूं मैं,इसलिए जब उसने कहा "मेरे बिना रह लोगी"?तो इस दिल को ताज्जुब नहीं हुआ
वक्त की हवा मेरे पास सेगुज़र कर बता गईकहानी जहा से शुरू हुई थीवही पर आ गई -
वक्त की हवा मेरे पास सेगुज़र कर बता गईकहानी जहा से शुरू हुई थीवही पर आ गई
फिर से महफ़िल में सयाने आये मुझ पे इल्ज़ाम लगाने आयेजोड़ के पैसे बनाया था घर दंगई घर को जलाने आयेपाप की गठरी जब भारी हुई कुछ एक गंगा में नहाने आयेफ़रेबी दुनिया में रहते हैं जो सादगी मुझ को सिखाने आयेजीते जी कौन पूछता है यहाँ मरने पे आँसू बहाने आयेकहीं तो होगा यहाँ दीन ईमान कोई तो मुर्दों को जगाने आये -
फिर से महफ़िल में सयाने आये मुझ पे इल्ज़ाम लगाने आयेजोड़ के पैसे बनाया था घर दंगई घर को जलाने आयेपाप की गठरी जब भारी हुई कुछ एक गंगा में नहाने आयेफ़रेबी दुनिया में रहते हैं जो सादगी मुझ को सिखाने आयेजीते जी कौन पूछता है यहाँ मरने पे आँसू बहाने आयेकहीं तो होगा यहाँ दीन ईमान कोई तो मुर्दों को जगाने आये
तुमसे मैने कहा और ये कहती रहीप्रेम तुमसे ही है सिर्फ तुमसे ही है। प्रेम होता तुम्हे भी तो क्या बात थी प्रेम तुमसे मगर एकतरफा ही है ।।तुम जो मिलते तो मिलने की क्या बात थीबात बिगड़ी जो बनती तो क्या बात थी दर तुम्हारे तो अपना झुकाया था सर ताज तुमसे जो मिलता तो क्या बात थीआँख के आँसुओं का नहीं मोल हैग़र हो तुमसे मिलन वो भेंट अनमोल है मैं न तुमको मिली, ग़म तुम्हे कुछ नहीं सुकून जो न हो फिर "मौसम" कुछ भी नहीं -
तुमसे मैने कहा और ये कहती रहीप्रेम तुमसे ही है सिर्फ तुमसे ही है। प्रेम होता तुम्हे भी तो क्या बात थी प्रेम तुमसे मगर एकतरफा ही है ।।तुम जो मिलते तो मिलने की क्या बात थीबात बिगड़ी जो बनती तो क्या बात थी दर तुम्हारे तो अपना झुकाया था सर ताज तुमसे जो मिलता तो क्या बात थीआँख के आँसुओं का नहीं मोल हैग़र हो तुमसे मिलन वो भेंट अनमोल है मैं न तुमको मिली, ग़म तुम्हे कुछ नहीं सुकून जो न हो फिर "मौसम" कुछ भी नहीं