For everytime,
when
you change me
with your trust,
putting courage
in my eyes
in all the times
I fail,
And for
almost all the times,
when you look at me
with belief
in those eyes
saying that
you trust
the changed me.
I thank you
for finding me
and making me
find all the ways
to have you.-
चांदनी के फूल
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यह तुम्हारा प्रेम है या चांदनी के फूल हैं
श्वेत हैं यह रंग में पर, प्रेम के अनुकूल हैं,
राग इनमें चंद्रमा सा, रूप है श्रृंगार का,
आकार में ये हैं सितारे, रस है मधु के पान सा,
दिव्य रखते रात को ये, भोर को करते चमन,
बनके रहते हैं झरोखे, तुमसे करवाते मिलन,
तुम कहो अब कैसे ये मात्र चांदनी के फूल हैं,
हूं चकोरी मैं तुम्हारी, ये हवा भी कर्णफूल हैं,
हूं भ्रमित मैं चांदनी से, ये तुम्हारे फूल हैं,
यह तुम्हारी चांदनी है और यह चांदनी के फूल हैं।
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वह श्याम की अद्भुत काया है,
वह कपट रहित कोई माया है,
है श्रृंगार रूप से दूर दूर,
वह शिव की अविरल छाया है..-
जिस पानी की मेरे, आपके और अमीर के घर में धारा आती है,
गरीब उसी पानी बूंदें लेने कई चौराहे-मौहल्ले जाता है।-
रघुबर दासी कौन कहे,
तोहे राम प्रियसी जग जानत है।
तू बार बार मिल आयी वन में,
तोहे राम-विरही जग जानत है।
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वर्ण मिला कर खुद में तेरा, मैं तुझ सी ही हो जाऊं,
श्याम श्याम दुनिया करती है, मैं शिव धूनी में रम जाऊं..-
खुसरो निज़ाम सी प्रीत है तुमसे, तुमसे यमुना के तीरे मिलना..
मैं जब अपना रंग उतारूं, पानी सा मुझमें मिल लेना...
फिर एक संकरी प्रेम गली में, हम द्वार द्वार पर मिल लेंगे..
मैं जोगन सा भेस धरूंगी, तुम राम राम में रम लेना...
मुझ कच्चे से धागे को फिर, तुम राग प्रेम में मल देना..
झूठा बेर हूं शबरी का मैं, तुम मंथन में मुझको हर लेना...
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तुम मृत्यु सा अटल नहीं, भीष्म सा दृढ़ बनना
तुम बनना मानस को अमृत, पर पुरुषों में राम नहीं,
तुम कालिदास की शकुंतला नहीं, इलांगो की कन्नगी बनना
ध्वस्त करना हर धारा को जो तुम्हारे प्रेम को रोके
तुम कोई ब्रह्मास्त्र नहीं, शिव का त्रिशूल बनना,
सत, रज और तम से ऊपर, तुम निर्गुण बनना
थाम लेना त्रिशूल पे बसी काशी को,
पर तुम काशी मत बनना
शास्त्रों में बंध जाओगे वरना,
तुम कश्मीर बनना,
जिसने तप देखा है शंकराचार्य का,
जिसके लिए कई युद्ध हुए हैं
मत बनना धारा का अमृत, तुम धारा सा अविरल बनना,
तुम बनना आभा फिर गुण की
तुम उर्मिल लक्षमण की ना बनना
उसको समर्पित जिसका समर्पण किसी और के लिए हो,
मत बनना तुम अथाह समुद्र सा
वरना अपने मैले बोझ से टूट जाओगे,
सावन की फुहार बनना तुम,
क्षणिक और निर्मल तुम निश्छल बनना,
तुम माटी की मूरत नहीं,
खरोंच तुम कोरे शीशे पर बनना
तुम शीशम की डाल नहीं,
तुम साल का पहला पतझड़ बनना,
तुम वो बनना जो कृष्ण का ना हो,
तुम माखन की मिश्री बनना
तुम बनना बस ताप द्रौपदी,
तुम शबरी का बेर ना बनना,
मत बनाना कुंती को माता, पुत्र तुम माया के बनना,
राजा तुम फिर मौर्य से नहीं, सिया पिता श्री जनक से बनना
तुम बनना एकांत निवासी, मत पड़ना जीवों के भव में
तुम अर्जुन का कर्तव्य नहीं, तुम अर्जुन की भक्ति बनना
तुम उसका गांडीव नहीं, तुम पंचतत्व की शक्ति बनना..
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आज रात ये चलती खिड़की,
बरखा सावन सहती खिड़की,
गुल में शोर मचाती है ये,
महक हवा की देती खिड़की,
रुक जाती ये जब जब थक कर,
खबर हमारी देती खिड़की,
दूर देस रहता बैरागी
प्रेम दे उसको, कहती खिड़की,
छांव सी काया तुझ पर साजे,
धूप में साया देती खिड़की,
माटी में मन लगता मेरा,
सो माटी माटी करती खिड़की।-