SABB LOG
PYAAR AUR JISM KO
DHOONDHNE
NAHII NIKALTE
KUCH LOG SOOKOON
DHOONDHNE BHI
YAHAA AAYE HAI-
उसके जिस्म पर ग़ज़लों का पहरा सा था ,
रफी साहब से रिश्ता इत्तेफाकन मेरा भी गहरा सा था .
-
आप एक Middle Class Family से थे.
पर English वाह कमाल है आपकी, कैसे?
वो क्या है ना साहब वक़्त के तमाचे और
ज़िन्दगी के तमाशे बहुत कुछ सीखा देते
We are all travellers so keep
changing the station for a new height to shine.
One Day people called it's success My Friend.-
पहले जन्म में ही क्यों
सात जन्मों का क़सम दे रहें हैं।
दिल का सौदा हो रहा है हमारा,
और दुनियावाले नाम रस्म दे रहें हैं।
किसी की मोहब्बत में सहरग बना था दिल,
सात फेरों के बंदिशों में,वफ़ा से मुकर रहे हैं।
कल जिनसे हुई थी हमारी पहली मुलाकात,
वो आज ही हमसे वस्ल करने को तड़प रहे हैं।
ये दुनिया ने ऐसी रीत क्यों है बनाई,
दिल से पहले लोग यहाँ जिस्मों के करीब आ रहे हैं।
अब दिल को दिखाकर कहेंगे भी क्या हम उनसे,
जो बेआबरू करके ज़िस्म को,नाम वस्ल की रात दे रहें हैं।-
मैं कैसे कहूँ इश्क़ में बात जिस्मों की होती नहीं,,
बात रूह की होती तो तुलना चाँद से होती नहीं,,
ना सुनती वो ताने किसी से कम खूबसूरत होने का,,
अपनी सहलियों के बीच में वो यूं सहमी होती नहीं,,
ना चलता कारोबार फिर ये मेकअप के रहीशो का,,
कोई माँ को फिर साँवली बेटी की चिंता होती नहीं,,
ना होती फ़िक्र किसी भी बाप को बेटी के रिश्ते की,,
कोई बेटी रिश्ते के इनकार से छिपछिप के रोती नहीं,,
ना होता बोझ दहेज़ का किसी भी पिता के कांधे पर ,,
किसी भी माँ बाप की आँखे फिर रात भर रोती नहीं,,
-
Followers तो बहुत बड़ गए लेकिन
लड़कियों के जिस्म पर कपड़े कम पड़ गए...
-