ना कोई सच्चा साथी है यहाँ ना कोई मुकम्मल ठिकाना है ।
कुछ पल का रैन बसेरा है यहाँ भोर होते ही चले जाना है ।।-
Latest favourite song - इश्क़ ... read more
मैं पागल ,झल्ली सी , ख़ुद में ही हर वक़्त खोई हुई, एक सिरफिरी सी ,
वो सुलझा,सयाना शांत समंदर सा,फिर भी मैं चाहत उसकी आखिरी सी,,-
यूं गुम है तेरे इश्क़ में कोई हमें भी तो अब हमसे मिलाये,
अभी उलझें है इस कशमकश में कैसे करेंगे पहली दफ़ा सजदा तेरा
किसे फुर्सत जो शिकवे गिले करे तुझसे या तेरी वफ़ा आजमाए,,
लोगों को फुर्सत कहाँ है मेरी कमियाँ ढूढ़ने से,
उनसे कहो खुद को भी कभी आईने के सामने तो लाये ,,
मुझे आदत नहीं है जो सबसे गुणगान करू अपनी रहमत का ,
मैं अपना सब कुछ वार दूं तुझपे,किसी से बिना कुछ कहे बिना कुछ बताए,,
बड़ा मुश्किल है ना इस दौर में सच्चे शख्स की तलाश करना ,
लोगो के दिल में कुछ और है पर वो जुबां से हमें कुछ और ही बताए ,,
मैंने छोर दिया है कब का दूसरों की बातों पर गौर देना ,
फर्क न पड़ता अब कोई तारीफ़ करे हमारी या हमें बुरा बताए ,,
मैंने चूम लिए तेरे नाम के लफ्ज़ो को जो कभी किताबों में भी दिखे अगर ,
कोई इस तरह करे मोहब्बत किसी से , या मोहब्बत में मेहबूब की इबादत करके दिखाए,,
हर रोज रब से मांगी तेरे लंबी उम्र की दुआ,और तेरे चेहरे की मुस्कान को तेरे सारे गम माँगकर ,
कोई सालों दर साल मेरी तरह तेरी सलामती की, यूं ख़ुदा के सामने एक ही दुआ हजारों दफ़ा दोहराये,,
कहाँ मुमकिन है मेरे प्यार को लफ़्ज़ों में कैद करना,जो समा ले सागर को खुद में कोई ऐसा बांध बना के तो दिखाए,,
वो आदित्य है मैं अवनि हूँ उसकी,शाश्वत घूमती रहूगी उसके इर्दगिर्द खामोशी से बिना कुछ कहे बिना कुछ जताए,,
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सारी वेदनाओं पीड़ाओं का रंग फीका है ,
जब से मैंने तेरे संग........जीना सीखा है ,,-
नम आँखे भी मेरी खुशी से मुस्कुराती हैं ,
जब खामोशी तेरी यादों के गीत गाती है,,
ठहर जाता है जैसे वक्त, उस एक पल के लिए ,
और उस एक पल में गुजरी सारी सदियां बीत जाती है ,,
एक बार फिर से लव मुस्कुराते है उन लम्हों में पहुँचकर ,
और एक बार फिर मुस्कुराते मुस्कुराते आँखे भर जाती हैं,,
मैं सहेज लेती हूँ दिल में एक एक पल को जो तेरे साथ गुजरे,
इन लम्हों के सहारे ही तो मैं तन्हाइयों में भी गुनगुनाती हूँ ,,
तुम्हें नहीं पता मैं चुपके से देखती हूँ तुम्हें तुम्हारें आंखों से ओझल होने तक ,
राह देखती नजरों में वो छवि आँखों में महीनों तक अमिट हो जाती हैं ,,
ये लफ्ज़ कहाँ इंसाफ़ कर पाते हैं मेरे प्यार की अभिव्यक्ति में ,
खैर मैं भी कहाँ अपने प्रेम को पूर्णतः लफ्ज़ो में तब्दील कर पाती हूँ ,,
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यूं ही नहीं इन सागरो का जल . . . . . . . . . . . . खारा है ,
शायद सदियों तक धरा ने अश्को से आसमाँ को पुकारा हैं,,-
उसकी एक झलक ही काफ़ी है ,
मेरे दिल के शहर को रोशन के लिए,
ब्रह्मांड नहीं बस एक चाँद ही काफ़ी है ,
सब उथल पुथल करने को ओशन के लिए,
कहाँ रास आते हैं ऊँचे -ऊँचे महल एक रानी को
जब मन मगन हो उसका हर पल कृष्णभक्ति में ,
एक छोटी कुटियाँ ही काफ़ी है मीरा सी जोगन के लिए ,
यूं तो प्रेम के लिए 16108 रानियाँ थी उस मुरलीधर की
पर एक राधा नाम ही काफी है प्रेम में पूर्ण होने को मोहन के लिए ,
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जब कभी कहीं बात सुकून की हो और उसमें तेरा जिक्र न हो ,
कहाँ मुमकिन है कि फूल गुलाब का हो और उसमें इत्र न हो ,,
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