आँचल खून से माँ का फिर भिगाया गया...
पूत - कपूत हुआ, एक किस्सा फिर दोहराया गया...
कसर नही छोड़ी बहू को बेटी बनाने में उन्होंने,
बेगुनाह माँ पर भरी सभा में सासपने का झूठा इल्जाम लगाया गया..
कमी बहू में भी हो सकती है, ये मानता नहीं कोई,
दलील पुरानी कथाओं की सुनाकर, चुप उन्हें ही कराया गया...
तिनका तिनका कर बांधा था परिवार को, हर किरदार बखूबी निभाकर जिसने,
बहू के खातिर हुआ बेटा भी अलग, माँ को वृधाश्रम का रास्ता दिखाया गया...
परिवार एक रहे इसकी कोशिश कई बार की उन्होंने,
पर कलयुगी ज़माने में सच्चाई को बेइज्जत कर रुलाया गया...
जितनी सिद्दत से बेटी, पत्नी, बहू फिर माँ का रिश्ता निभाया जिसने,
उसे हर रिश्ते के द्वारा, कई बार सताया गया....
गलती हो या गुनाह, माफ़ करके प्यार लुटाती रही अबतक,
आगमन पर बहू के माँ के प्यार को भुलाया गया...
कभी न पूछा न समझा क्या हाल हुआ ममता की चाहत का,
बस कह दिया ज़माने ने की बहू पर जुल्म ढाया गया...
फिर भी अपनी किस्मत को दोष देकर शांत बैठ जाती है वो,
मना लेती है कहकर खुद को की मेरे खुशहाल परिवार पर शायद कोई टोटका कराया गया..
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