भरे जख्म फिर से सताने लगे है
वो फिर से कही दिल लगाने लगे है
जिन्हे भूलने मे जमाने लगे है
वो अब गैर संग नज़र आने लगे है
दवा वो नशे से भुलाए जो सपने
वही ख्वाब आँखो मे छाने लगे है
जो गुज़रे है वक़्त क़यामत के जैसे
उसी दौर मे हम जाने लगे है
-
जख्मों को खुला छोड़ जाना, तेरा बिलकुल लाज़मी था,
कि शायरी में दर्द न हो, तो लोग मुस्कुराते भी नहीं हैं।-
वो आई थी ऐसे जैसे मेरे जख्मों की दवा बनके
मै तो पहले से ही बिखरा था फिर वो आ गई हवा बनके-
वक़्त ने सिल दिए हैं कुछ ज़ख्म सलीक़े से, कुछ अभी भी हरे हैं,
अलामात नहीं दिखते उन ज़ख्मों के, हम किश्तों में दर्द से मरे हैं।।
-
ज़ख्म हमारा तो उम्मीद - ए - मरहम क्यूँ किसी और की दरकार हो,
दर्द में रह लेंगे बेशक़ कोई हाल पूछे हमें क्यूँ भला ये इसरार हो।।-
तुम अपने हुस्न से इश्क का शिकार करते हो।
हर आशिक पर एक ही सितम बार-बार करते हो।
खैर, कोई अच्छी कीमत दे तो हमें भी बताना,
सुना है तुम मोहब्बत का व्यापार करते हो।-
बिस्मिल हो चुका हु तेरे इश्क मे मुझे कोई दवा तो बता दे
मे जियु या मरू चल तु तो यही बता दे-
Dear inside,
तुझपे मरहम लगाए तो लगाए कैसे,
मेरी ही गलतियों ने तुझे कई गहरे ज़ख्म दिए है,
ख़ैर, भरते नहीं ये, सूख तो जाते,
पर यादों के नमक रगड़कर हमने ही तो हरे किये है-
देख के इन्हें तुम्हें तकलीफ़ ना हो कहीं
अपना हर जख्म हम तुमसे छुपाते है
तड़प ना उठो मेरा दर्द महसूस कर कहीं
हम ख़ामख़ाह ही मुस्कुराते है..-