Hm shant samundar jaise h
Khamosh hmari lahre h
Gardish bhut h andar lekin
Bahar sabar k pahre h
Pani sar se jab uthega
Sabar ka badh jisdin tootega
Hm sunami bnkr ayenge
Hr zulm ki bahti qasti ko
tufano me dubayenge
Hm aman ko wapas layenge-
Delhi
Engineer
Not a professional writer
Came back to my home town after spending 3 mo... read more
जिसे तुम अपना समझते हो ना
वहीं तुम्हे अपनो से दूर कर देगा
बेकसुरी के क़िस्से जिसके सुनाते हो
दो पल मे वो कोई कसूर कर देगा
मेरी कहानी को मेरे तक ही रहने दो
कोई सुनेगा तो मशहूर कर देगा
तुमपे चढ़ा है ना जिसके होने का सुरूर
वही तेरे गरूर को चकनाचूर कर देगा
जिसके आमद पे रौशन पूरे शहर किये
वहीं तुम्हे महरूमे नूर कर देगा
मयकशी तर्क कर नीले चश्म पे गये
उनकी आँखे ही नशे मे चूर कर देगा
उसके तारीफों के जाल मे फँसते जा रहे हो
किसी और को भी एक दिन वो हूर कर देगा
बंद आँखो से ऐतबार अच्छा नही SAM
ये अदा फना वो बर्बाद तुम्हे जरुर कर देगा
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इन मौज़ो को देखकर ये ख्याल आता है
बूंद से बूंद जुदा होता है एक ही दरिया में
फिर आदमी क्या चीज़ है-
Kal pure din soya
puri raat bhi soya
fir aaj pura din bhi
sote huye guzra...
Kya kru sote sote thak gya hu
Ab mjhe aaram ki jrurat h-
छुपा रखा था जिन यादों को दिल के तहखाने मे
भींगा दिया उनको लाकर के मयखाने मे
की अब ईश्क़ से ना होगा वास्ता दूर तक कभी
इसी उम्मीद से आगे बढे है कुदरत के कारखाने मे
भीक मे मांगी गई मुहब्बत की नही कोई तलब
चन्द यार ही काफी है इस तंग जमाने मे
छलकते जाम से बढ जाती है तिसनगी
फक़त दो घूंट ही रहने दो पैमाने मे
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रेत मुट्ठी मे उठाता हूं गिरा दिया करता हूं
नाम लिखता हूं जमीं पे मिटा दिया करता हूं
याद आती है जब कभी रातों मे
किसी तरह खुदको सुला लिया करता हू
शबे ख्वाब मे जब आती हो तुम करीब
अपने तकिये को गले लगा लिया करता हू
अब बारिश बादल धूप छाँव मायने नही रखते
कभी भींगता हू तो कभी खुदको सुखा लिया करता हूं
उसकी यादों से निजात पाने के चक्कर मे
कई अजनबियों को अपना बना लिया करता हूं
जब भी मिलता है कोई जख्म दोस्तों से
दुसमनो को तोह्फे भिजवा दिया करता हूं
जाम से प्यास जब दिल की बुझने लगे
तो थोड़ी मुहब्बत भी उसमे मिला दिया करता हूं
जब बात होती है ना अहल लोगों से
बिन सोचे हाँ मे हाँ मिला दिया करता हूं
जब कभी जवानी ढ़ूँढ़ती है तेरे घर का पता
बचपन की यादों मे उसे घुमा लिया करता हूं
कुछ इस तरह यादों से पीछा छुड़ा लिया करता हू-
भरे जख्म फिर से सताने लगे है
वो फिर से कही दिल लगाने लगे है
जिन्हे भूलने मे जमाने लगे है
वो अब गैर संग नज़र आने लगे है
दवा वो नशे से भुलाए जो सपने
वही ख्वाब आँखो मे छाने लगे है
जो गुज़रे है वक़्त क़यामत के जैसे
उसी दौर मे हम जाने लगे है
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