हैं मुखालिफ¹ कुछ जने, गद्दार के जैसे,
कल तलक जो लग रहे थे, यार के जैसे।
हादसा एक दिन यकीनन आएगा उन तक,
जो मौन साधे है खड़े, दीवार के जैसे।
क्या है नहीं इंसानियत उसमें मेरे मौला,
जो ले रहा है फैसला, बीमार के जैसे।
वाजिब मेरे प्रश्नों से तेरा मौन हो जाना,
क्यूं रुख तुम्हारा हो रहा, सरकार के जैसे।
यक्सर मिटा देते थे खुद को इश्क़ के जानिब,
अब बचा है इश्क़ बस, व्यापार के जैसे।
थी बहुत फुरसत कहां उस दौर में गालिब,
कट रहा हर एक दिन, इतवार के जैसे।
क्या कुशन की शायरी से है शगफ़² तुमको,
या पढ़ रहे हो तुम फकत, अखबार के जैसे।-
फिर कुछ चीख़ें छुप जायेंगी
जुर्म की लाखों परतों में
फिर कुछ आवाजें दब जायेगी
जग की बेबुनियाद सी शर्तों में।-
ज़रूरी नहीं कि नारी की रक्षा करने हमेशा ही श्री कृष्ण आये,
कभी कभी अपनी रक्षा के लिए खुद ही कृष्ण बनना पड़ता है।-
ए खुदा मुझे समझ नहीं आता तूने ये कैसे लोग बनाए हैं
इंसानियत भुला कर जो इतनी दरिंदगी पर उतर आए हैं
क्या यह जो हाथरस में हुआ ऐसा ये मामला पहला होगा
जब बेटी की हालत देख यूं परिजनों का दिल दहला होगा
मैंने सुना जिसका बलात्कार हुआ वह एक दलित बेटी थी
मुझे ऐसा लगता है ज़रूरी ये है कि वह किसी की बेटी थी
शायद जो कुकृत्य हुआ उसके लिए जिम्मेदार हम भी हैं
पुराने घावों को खुला छोड़कर भूल जाते हैं वो हम ही हैं
हमें शर्मशार करने वाली ये घटनाएं कब तक होती रहेंगी
ये वोटों की भूखी सरकारें आखिर कब तक सोती रहेंगी
कुछ शर्म करो ऐ सत्ताधारियों अपनी जिम्मेदारियां संभालो
वादों के तीर चलाना त्याग दो अपनी बहन-बेटियां बचा लो
-
माना तेरी शोहरत सा उसका तकदीर नहीं है,
उसका भाई उसका बाप तुझ सा अमीर नहीं है ।
पर रख तू अपना रुतबा अपनी लंगोट में ,
उसके घर की आबरू, तेरे बाप की जागीर नहीं है ।।-
वो चाँद पर तो जा सकती है,
पर अकेले घर से बाहर नहीं।
उन्हें कहते भले ही देवी है, पर दिल से कोई मानता नहीं।
छोटी हो या बड़ी, सबकी जिंदगी है दाँव पर लगीं।
यूँ तो हर कोई कहता रहता है
BETI BACHAO, BETI BACHAO
और जब बचाने की बारी आती है
तो सबसे पहले कानून ही पीछे हट जाती है।
इंसान ही इंसान को समझता नहीं,
इसलिए दरिंदगी, हर बार हद पार करती गयी।
क्यूँ समाज सो जाता है, MEDIA खामोश हो जाता है।
हर बार शांत करा कर,
CASE को रफा दफा कर दिया जाता है।
ना फक्र होता है, ना नाज, ना होता किसी पर विश्वास।
इस देश में ना जाने कब तक होता रहेगा बालात्कार।-
अभी तो जख्म ताजा है ये दुनिया खूब गाएगी।
मगर फिर कल के जैसे कल इसे भी भूल जाएगी ।।
यहां इन्साफ भी मिलने मे काफी वक्त लगता है ।
अभी बेटी कि मां अदालत के सैकड़ो चक्कर लगाएगी।।
सजा -ए-मौत भी होगी मुकर्रर ये खुदा जाने।
सदाकत सर पटक के चीखेगी-चिल्लाएगी।।
दरिंदगी जोर से बोलेगी के तारीखें बढाते जा।
अदालत झुक के कागज पर कलम अपनी चलाएगी ।।
-
न्याय तो हो कर रहेगा
समय आ गया है
सरकार ने सबूत मिटाया है,
हमें सरकार मिटानी होगी।
अभी नहीं तो कभी नहीं।
-