अल्पविराम
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एक पैर ज़मीं एक आसमां पर है।
कितना मुश्किल है लिखना कुछ आसान सा। कुछ ऐसा जिसमे ना भारी-भरकम शब्द हो, ना गहरे फ़लसफें हो, ना तुकबंदी की कोशिशें हो, ना उतार चढाव की मसक्कतें हो। जिसमे ना सियासी मुद्दे हो, ना उलझे-बिखरे रिश्ते हो, ना अधूरे इश्क के किस्से हो, ना जिंदगी के अनकहे हिस्से हो।
कुछ ऐसा जिसमे ना जरूरते हो, ना ख्वाहिशें हो, ना किसी की पसंद-नापसंद का जिक्र हो, ना तारीफ़ें बटोरने का फिक्र हो। जिसमे मंजिल की तलब नहीं बस जूनून हो। जिसमे सुकून की तलाश नहीं पर सुकून हो। कुछ ऐसा ही बेपरवाह, बेमतलब, बेजान सा । शायद इक रोज मैं लिखूँगा कुछ आसान सा।
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चाँद, आसमां, मौसम, जिंदगी और ख्वाब
इश्क़ हर उस खूबसूरत चीज के साथ लिखा गया,
जिसमें बदलाव था।-
जिसने भी लिखा पहली बारिश पे लिखा,
आखिरी बारिश पूरे सावन के किस्से लेकर आयी और गुजर गयी,
पर अंत की खूबसूरती को शब्दों में तराशना कहाँ आसान था !-
हर शाम ख़्वाहिशों के पीछे भागा जाए ये मुनासिब नहीं,
कुछ शामें हैं जो मैंने सिर्फ खामोशी के लिए संभाल कर रखी हैं।-
तितली के पंख पर दिखी चमकती, कुछ बारिश की बूँदें,
निगाहों का सुकून की तरफ ये सबसे छोटा सफ़र था।-
वो मुझे भूल गया, जैसे मैं था ही नहीं
मैंने उसे याद रखा, जैसे वो गया ही नहीं।-
वो मेरे करीब से गुजरी थी, किसी शाम की तरह
मैं बस उसे देखता रह गया, खुले आसमान की तरह।-