गुनाहों का देवता 🌺❤
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गुनाहों का देवता ( धर्मवीर भारती )
मैंने आज ही यह उपन्यास ख़त्म किया है। मन बहुत उदासीन हो गया है. ऐसा लगता है जैसे जीवन में कोई रस ही नहीं रह गया है. ऐसा लगता है जैसे मैं इस कहानी का हिस्सा हूं, कुछ दूरी पर खड़ा हूं और शुरू से अंत तक सब कुछ देख और महसूस कर रहा हूं। अब जब मैंने यह उपन्यास पढ़ लिया है तो मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं किसी दूसरी दुनिया में आ गया हूं। धर्मवीर भारती जी को शत-शत नमन, उनके लिखे एक-एक शब्द में इतनी गहराई और दर्द है कि वह हृदय के तारों को भेदकर सीधे आत्मा तक पहुँच जाता है।-
I have learnt from 'Gunahon ka Devta' that Love is like a burning candle which emits light (Dedication) and also gives rise to smoke (lust) .
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सुधा-चन्दर कभी अलग नहीं लगते...
जैसे राधे-कृष्ण एक साथ जुड़े हुए हैं...
लेखक की कहानी के पात्र इतने पवित्र और जुड़े हुए हैं कि...
वो ईश्वर के नाम की तरह ही हमेशा साथ नज़र आते हैं...
राधा का नाम लेते ही श्याम...
और...
सुधा का नाम लेते ही चन्दर...
बस, इससे बड़ी जीत लेखक की क्या हो सकती है...!!!-
“बड़ी फीकी, बड़ी बेजार, बड़ी बनावटी लगती हैं ये कविताएँ, मन के दर्द के आगे सभी फीकी हैं।”
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मेरी प्रीत सुधा सी ही होती
मगर तुम्हें भी तो चन्दर होना था।।
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रखी हुई किताब उठाने से पता चला कितने कीट-पतंगे दबके मर गये,
हमने हिम्मत क्या जुटाई किताब उठाने की हम तो बस् पढ़के मर गये!!-
Aaj mai allahabad university se guzara to "Sudha" aur "Chander" ki yaad aa gayi
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