सुकून की तलाश में अब गाँव की ओर रुख कर रहे हैं
जो बड़े चाव से नौकरी करने शहर को निकल आये थे
Sanchit ✍️-
पर नियतन बेईमान कहां
अदब है मुझमें, तहम्मुल भी मुझमें
पर कवि... read more
वो दिन, वो बातें, वो मुलाक़ातें
कुछ भी पहले सा न रहा
मैं, मैं न रहा
वो, वो न रहा-
वो बसर कर रहा है मुझ में ऐसे
कभी सजाया हो अशियाना उसने जैसे
मेरे हर अंदाज से वाक़िफ़ लग रहा है
हो सकता है घर मेरा जलया हो उसी ने जैसे-
मैं तेरी जुल्फों का गजरा होना चाहता हूँ
कानों में जो पहनो
मैं वो झुमका होना चाहता हूँ
हार, टिका, काज़ल, बिंदी इत्यादि
मैं तेरे पाँव का बिछुआ होना चाहता हूँ-
फिर एक शक्श वो मेरा न रहा
सिलसिला अधूरी चाहत का फिर पूरा न रहा
राह - ए - मंज़िल में हार बैठे उसको
वो शक्श जो हर दम मेरी ज़ुबॉं पर रहा-
वो खूबसूरत काइनात सी लगती है
कांटों के बीच में गुलाब सी लगती है
आँखें उसकी की उनमे सारा जहाँ देख लूँ
वो जैसे भी आये सामने बस कमाल लगती है-
सूनी कलाइयों पर आज फिर,
कच्ची डोर का पहरा हुआ
उस रेसमी डोर ने आज फिर,
हिफाज़त का ज़िम्मा लिया
एक ने रेहमत-इ-खुदा की फ़रियाद की,
और एक ने ताउम्र सलामती का करार दिया-