जाग जाता है, एक नन्ही-सी आहट से वो गरीब..!
ऐ खुदा! उसके घर में लड़की तो है, पर दरवाजा नहीं।।-
वो दिल में न जाने कितने जज़्बात लिये बैठा है,
सुकून से सो नहीं पाता फिर भी ख़्वाब लिये बैठा है!
कभी दो निवाले परोस के तो देखो उस गरीब को...
तुम्हारे लिए दुआओं का समंदर बेहिसाब लिए बैठा है।।-
ना रोज़ी का ठिकाना है ना रोज़गार का
देखा नहीं नोट कबसे मैंने दो हज़ार का
रोज़ ही जीती - मरती है दिल में हसरतें
कैसे रखूँ हिसाब आरज़ू-ए-बेशुमार का।-
सर्दी, गर्मी, बारीश, तूफ़ान
सबमें जमता, जलता, तड़पता हूँ।
हां साहिब मैं गरीब हूँ न
मैं हर मौसम की 'मार' झेलता हूँ।-
अखबार में देश के हालात को पढ़ ठेस बहुत पहुंची साहब,,,,,
गरीब को उसी अखबार पर रोटी मिली तो खुश हो गया....!!!!!-
आपके लिए हसीं,...
हमारे लिए...
एक कहर है जिंदगी...
अमीरों के लिए खुबसूरत...
हम गरीबों के लिए...
एक जहर है जिंदगी...-
गरीबी
गरीब हूँ साहब , पर ख्वाब मेरे भी है,
ख्वाब बहुत है, मगर हालतों को देख, ख्वाहिशे रोज दफन करनी पडती है मैं हर मौसम का कहर झेलता हुँ, एक भूख का कहर झेलता हूँ।
इसीलिये तो आज जिन्दगी के बड़े- बड़े खेल खेलता हूँ ।
गरीब तो हूँ, साहब पर सपना पूरी करने की चाह मैं भी रखता हूँ।
जहा अमीर बच्चे A.C aur light में भी पढ़ नही पाते,मैं इधर कड़ी धुप ओर अन्धेरे की रोशनी में दिये में भी पढ्ने की चाह रखता हूँ ।।
साहब गरिब तो हुँ मैं , लेकिन हर तहजीब रखता हुँ।
जहा अमीर मुझे देख जुते मारते हैं, मैं उनकी स्वागत में पलके बिछाने का बड़ा दिल रखता हुँ।।
गरिब तो हुँ ही , मगर साहब अच्छा खाने का मन में भी रखता हुँ।
जहा अमीर लोग burger pizza, फेंक जाते है, उनकी झूठी प्लेट उठाने का मन मैं भी रखता हुँ।।
गरीब तो मैं हुँ ही साहब , मगर हर बोझ उठाने का जज्बा भी रखता हूँ ।
जहा अमीरों के बच्चों माँ बाप की दौलत को , चंद पार्टी में उड़ा आते है, मैं उतने ही कमाई के पैसे माँ बाप का पेट पालने के लिये रखता हुँ।
अब में क्या कहूँ, साहब आज इस गरिब का मजाक , अमीरो के साथ कुदरत ने भी बनाया है।
ख्वाब दिखाता तो हैं मगर पूरे करने में पीछे हठ जाता हैं। और उसकी खुदाई भी क्या कमाल हैं,आज उसने खुद को भी बिकाऊ बनाया है।।
साहब, आज मैने अपने सारे ख्वाबों को गरीबे तले दबाया है।।
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न दिन ही समझ आये न रात का पता
यह माजरा क्या है तू ही बता ऐ खुदा
अमीर-ए-शहर काे हासिल सब रास्त
कि अहल-ए-मुफलिस है भूखा साेया
अहल-ए-इंसानियत है यहाँ फ़िक्रजदा
कि कमजर्फाें काे है मजहब का नशा
मुआ'फ कर सारे गुनाह तू ऐ रब्बे रहीम
कि अब इस वबा की काेई ताे बता दवा-
आज हमें सवाल करना है गरीब बेचारों के लिए,
लुटेरे हाथ चार पाए हैं क्या पैसे बटोरने के लिए।
बेगुनाहों का गला घोटते है अपने निसाने के लिए,
सितारे जड़ दिए हैं अपने निसान छुपाने के लिए।
सपनों में दरिंदगी घोलते है बसे घर उजाड़ने के लिए,
उनका नाम आता है सबसे ज्यादा अमीरी के लिए।
हाथ लोहे के बनवाए हो जैसे दिल टटोलने के लिए,
अब पत्थर मार के देखते हैं दिल तोड़ने के लिए।
आज हमें लड़ना है उन गरीब बेरोजगारों के लिए,
क्यों हम तौलते है उन्हें जो है अन्नागारों के लिए।
चलो यहां से चले कोई नहीं है उम्र भर के लिए,
नाम और पैसा भी नहीं रहा जीवन भर के लिए।-