वो रहने वाली महलों की, मैं उसके दिल का राजा था. .
वो बासी शायरी भी मदहोश हो सुनती, अन्दाज़ जो मेरा ताज़ा था. ..
पहरेदारों से नजरें चुरा, जो कभी-कभी वो मिलती थी. .
बागवान की सारी कलियाँ, उसी रोज़ तो खीलति थीं. ..
चेहरे से उसके लठ जो हटता, मैं सारि दुनिया भूलाता था. .
वो थोड़ी सी तारीफ़ क्या कर दे, मैं फ़ूले नहीं समाता था. ..
खुद बंद बंद सी सहमी-सहमी, सारे खुशियों की वो चाबी थी. .
जगा जो मालूम हुआ, हकीकत कहाँ ख़्वाब ही थी. .. ।।।
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