दिल के दरवाजे पे...
दीये जलाए बैठे हैं...
सुनो ना,
अब तो लौट आओ...
तुम्हारे इंतजार में...
खुद को भुलाए बैठे हैं...-
दिवाली की बधाई...
मेरे उस मेहबूब को भी...
जो दिये के साथ-साथ...
मेरा दिल भी जलाते हैं...-
संजो कर रखे थे मिलन की रात के लिए
तुम्हे देख हम वो, दिये जलाना भूल गए
तुम्हे देखा तुमसे मिले बातें हुईं मुलाकातें हुई
पर अफसोस ! कि हम, नजर मिलाना भूल गए-
وہ جسکی رسم لہو سے دئے جلانا ہے،
وہی ہے میرا قبیلہ وہی گھرانہ ہے۔۔!!
वो जिसकी रस्म लहू से दिये जलाना है,
वही है मेरा क़बीला वही घराना है..!!-
जो दिए घर को रोशन करने के लिए जलाए जाते हैं उनसे कभी कभी घर भी जल जाते हैं ।
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बेताबियो के मंदिरो में,
दिये प्यार के जलते हैं ।
जब हम मांगते हैं दुवा,
उस मंदिर के भगवान से,
तो आपहिका चेहरा वे हमे दिखलाते हैं ।-
तुम भी मेरे अश्रुओं से
द्रवित हो जाओगे
जब आओगे
तुम पास मेरे
फिर दूर न जा
पाओंगे..!❣-
जले लाख दीये, उजाले में भी वो तासीर कहाँ,
जो चमक बूढ़ी आँखों में, बेटे को देख होती है।
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मेरे दिल में प्यार के दिए जलाकर,
वो रंगोली किसी और के साथ बना रही हैं,
अबकी बार वो दीपावली किसी और के साथ मना रही हैं.-