मैं उगती हुई सूरज हु
आज ही नही
कल फिर नई शायरी के साथ दिखूँगी-
कुछ खोना जरूरी है क्या कुछ पाने के लिए? जैसे
तुम्हारा चले जाना जरूरी था याद आने के लिए?
लगा डाली जो मोहब्बत ने मन की जलन न बुझेगी
जला भी डाले अपना सब सामान ज़माने के लिए!-
कुछ वक्त खुदके साथ भी गुजारता हुं,
मेरी तन्हाई हररोज मे ही दुर करता हुं।
ढलती श्याम को देखकर मुस्कुराता हुं,
हररोज ऐसे ही मे खुदको संभालता हुं।
ढलती श्याम को अलविदा बोलता हुं,
लौटकर फिर, वापस घर आता हुं।
कल फिर वापस लौटकर आने का
उसे वादा करके आता हुं।-
ख्वाहिशें भी खुले आसमा सी होती है.. सहाब
कब शुरू कब ख़तम किसे क्या पता
पता तो तब होगा...............JANAB
जब वक़्त की DAHLEEJ पार कर,
खुद का एक मुकाम कर ले।।-
तुम यहां साथ होते तो में तुम्हें बताता की
ढलती शाम कितनी खूबसूरत हैं,
“बिलकुल आपकी तरह”-
कभी उठता सूरज देखा तो कभी ढ़लती शाम,
तुम ने कोई कसर ना छोड़ी करने हमें बदनाम ।-
Dhalti saanjh kuch yun...
Teri yaadein mujhe saup gayi...
Ki raat ke andhere mein...
Kore kagaz pe sihai
Tere rang bikher gayi....-