Ee mohabbat tere anjaam pe rona aaya,
Jane q aaj tere naam pe rona aaya......
Wo dagmagate badhte kadam humare,
Aaj mujhe mere es haal pe rona aaya....
Wo Bheegti tarasti aakhein humari,
Aaj hume humari aakhiri mulakat pe rona aaya...
Dulhan bni baithi apne atit k panno ko jalati hui,
Barat m nachate apne rakeeb pe rona aaya....
Jata dekh apne pyaar ko usne,
Khamoshiyon k saath alvida kehte rona aaya.....
Mohabbat k khel ko aakhiri manzil pe harata dekh,
Ee kismat mujhe tere badkismati pe rona aaya......
Ee mohabbat tere anjaam pe rona aaya,
Jane q aaj uske naam pe rona aaya....-
"Wo hai Mohabbat"
Bina kahe jo smjh jaye wo h mohabbat......
Kisi k na hone pr v har waqt aankhein use hi dhundhe wo h mohabbat.........
Jiske kareeb aane se dil zor ka dhadak uthe wo h mohabbat.......
Jiski khushi jiska gum sirf aapke liye ho wo h mohabbat........
Jo har waqt aapko apne pass rkhna chahe wo h mohabbat.......
Jo aapki hasi k Vjh ho or gum k dawa ho wo h mohabbat........
Aksar log hmse puchte h k mere liye kya h mohabbat... jawab ye rhta h hmara, mere liye "WO" h mohabbat.......-
हम तो हद से गुज़र गए तुम्हें चाहने में.......
तुम ही उलझे रहे हमें आज़माने में।।-
चल आज सारे सिकवे भूलाके एक नई शुरूआत करते हैं,
बिखरे हुए रिश्ते को समेटने की एक छोटी सी आगाज़ करते हैं।
छोरो ना ये गुस्सा, गुस्से से क्या ही मिला हमें,
वो नासमझी सी टकरारें, वो समझ के मोहब्बत वाली बातें करते हैं।
ना थी मैं तुम्हारे जैसी, ना तुम थे मेरे मुस्तहक़,
फिर भी अटखेले रिश्ते को संभालने की नादानी दुबारा करते हैं।
बहुत हुआ रोज़ रोज़ का ये रूठने मानने का खेल,
चालों आज फिर से वो पुरानी वाली बातें रूमानी करते हैं।
दुबारा झगड़े का वादा तो नहीं करतीं हूं,
पर खुद की गलती ना होने पे भी तुम्हें मनाने की कसम खाते हैं।
चल आज सारे शिकवे भूलाके एक नई शुरुआत करते हैं,
बिखरे हुए रिश्ते को समेटने की एक छोटी सी आगाज़ करते हैं।।
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कुछ कह ना पाए
क्या करे जब कुछ समझ ना आए,
दिल में हैं कुछ पर ज़ुबान पे ना आए,
कहना तो कुछ चाहते हैं तुमसे,
लेकिन कुछ कह ना पाए।।
लगता हैं दुनियां भी हमसे खफा हैं,
जब हम चाहे किसी को तब वो भी हमसे जुदा हैं,
ये दिल भी रोया हैं कहीं ना कहीं,
लेकीन इन आखों से बयां हों ना पाए,
कहना तो कुछ चाहते हैं तुमसे लेकिन कुछ कह ना पाए।।
जब जब दिल जाता हैं उसके पास,
दिल को कुछ सुकुन सी होती हैं,
पूछा हमने दिल से बहुत,
लेकिन वो भी कुछ कह ना पाए,
कहना तो कुछ चाहते हैं तुमसे लेकिन कुछ कह ना पाए।।
अगर हैं कुछ बात दिल में हमारे,
तब वो ज़ुबान पे क्यूं ना आए,
कहना तो कुछ चाहते हैं तुमसे लेकिन कुछ कह ना पाए।।-
तन्हाई भी मेरी आज शोर कर रहीं हैं…..
किसी के बिछड़ने की गुफ्तगू कर रहीं हैं…..
ना जाने क्यों बैचैन हैं दिल मेरा,
शायद रिश्तों की आजमाईशे हो रहीं हैं…….-
की भी अनोखी कहानी हैं.......
सवारने की चाहत में कागज़ को,
कलम की बिखरती निशानी हैं।।-
एक अजनबी को अपना दोस्त माना हैं,
पर शायद वो किसी और का साहारा हैं,
लगता था वो कुछ अपना जैसा,
पर ना जाने क्यों हमसे गैरों सा रिश्ता बनाया हैं ||
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ज़र्रा ज़र्रा बिखेर के रख दिया हैं लोगों ने......
अब ख़ुद को फ़िर से समेटने की बारी हैं......-