बाल मज़दूर मजबूर है,
आँखों में नहीं नूर है।
नसीब ऐसे रूठा है,
क्यूँ वो इतना मजबूर है।।
पढ़ना खेलना चाहता है,
बदनसीबी से लड़ना चाहता है।
वक़्त ने मजबूर कर दिया इसकदर,
वरना कौन कन्धों पे बोझ उठना चाहता है।।
हर ख़ुशी से दूर है क्या उसका क़सूर है,
हमउम्र की सेवा करने के लिये क्यों वो इतना मजबूर है।
-