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कुछ चीजें जो वक्त के बाद खो जाएगी,
उन्हें बचाना चाहती हूं ।।
जैसे सूखे पत्तों की मर्मर,
अधूरी लिखी कविताएं,
बिन पते की चिट्ठियां,
सुखी नदियां,
मुरझाई कलियां,
टूटते सितारों की चमक,
और दिए की आखिरी लौ ।।-
हमें संवारते-संवारते ,
भूल जाती है खुद भी संवरना ,
खो देती है अपने सारे एहसास।।
शायद मां भी ढूंढती होगी अपना बचपन,
अपने मां के पास।।-
जरूरी है कुछ चीजें बिखरी हुई भी,
जैसे , तुम्हारे बिखरे बाल,
बिखरी हुई तुम्हारी यादें,
और बिखरी हुई सुनहरी सी धूप।।-
गरीबी हो या भुखमरी,
बेरोजगारी हो या फिर हो मुद्दा मजहबी,
चाहे बातें हो भ्रष्टाचार की,
या वादें हों शिष्टाचार की।।
इन बातों से उम्मीदवारों को सच में इतना लगाव है,
या बस इसलिए की चुनाव है ?-
हमेशा ही मुझे विकल परिस्थिति में छोड़ जाते हैं ।।
अंधकार में जलते हुए दिए की ,
वो आखिरी टिमटिमाती हुई लौ ।।
आसमान से टूटते हुए तारे की,
वो आखिरी सी चमक ।।
या फिर, तुम्हारे साथ बिताए ,
वो आखिरी कुछ क्षण ।।-
मैं चाहती हूं सहेज कर रखना,
तुम्हारे अंदर का बचपन ।।
ठीक वैसे ही जैसे सहेजी जाती है,
कोई अत्यंत प्रिय वस्तु ।।-