गौर कीजिएगा ,
कीमती अल्फाजों को ।
बाज़ार से सारी रौनकें ख़रीद लाएं ,
दौलत शौहरत ,
गहने ज़ेवर ,
माशाअल्ला !
कायनात स चुना था ,
निकाह का जोड़ा ।
कमी कहां ,
पर ख़ाली ,
कुछ तो ,
रवां उसके भीतर ,
जज़्बात भरे थे ।
पर सुनने वाले ,
खलिश को भरने वाले ,
शून्य लोग थे ।
सारे ऐश-आे-आराम थे ,
पर जान भरना भूले थे ।
क्या पुतली को विदा किए थे ?
---Anuradha Sharma
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