मैंने छोड़ दिया है लिखना कि अब लिखूं तो तुम्हारा नाम
लिख देती हु
कोई बुलाए किसी और को तुम्हारे नाम से, मैं उस पल
में तुम्हे जी लेती हू
मैंने बिठा रखा है तुम्हारी यादों को एक कमरे में,
जब खो जाती हूं तो उनसे मिल लेती हू
किफायती नहीं मोहब्बत उतनी जितनी दिखती है
जैसी जिंदगी होती है फिर वैसी भी नहीं बचती है
देखा नहीं है आरसो से तुम्हे, देखना मोहब्बत
तो नहीं, मगर मसला ये है कि मैं तुम्हारी तस्वीर
भी तो नहीं रखती हूं
मुकम्मल हो जाए अगर एक ख्वाहिश तो और
माँगने को दिल करता है अब तुम नही मिले तो
इश्क़ करने से भी डर लगता है।
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