कुछ रास्ते अंतहीन से
बस यूँ ही चलते जाते हैं ।
न मंजिल ,न ठिकाना ,समय की ढलान पर
बस यूँ ही ढलते जाते हैं ।
दोष दें भी तो किसे दें ,प्याले नाकामी
बस यूँ ही पिए जाते हैं ।
होता है एक दिन , सफर ऐसे ही तमाम
बस यूँ ही जिये जाते हैं ।
उड़ते फिरते आवारा झोकों की तरह
बस यूँ ही बिखरते जाते हैं ।
फिर भी दबी सी आस में ,मंजिल पाने की
बस यूँ ही चलते जाते हैं ।
बस चलते ही जाते हैं ।।... Akki
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