karishma suthar   (ks_)
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Joined 26 November 2017


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Joined 26 November 2017
22 JAN AT 13:10

द्वापर मे छुटा फिर वही सहारा मिला है
अयोध्या को फिर राम दरबार मिला है

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24 DEC 2023 AT 22:03

रोने की वज़ह है मगर, ख़ुद पे हंसी आतीं हैं
जाने किन कर्मो की सजा हम पर आतीं हैं

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24 DEC 2023 AT 21:55

सब का मन रखना होता है एक आपना मन छोड़ के
सब सुनना होता है बस एक अपने दिल को छोड़ के

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16 MAY 2023 AT 16:29

जो आँखो के हिस्से आए उनके कितने किस्से आए ज़िंदगी
हमे तो नहीं पता उनका, काश उनके भी हिससे आए जिंदगी

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12 APR 2023 AT 15:01

मैं कतरा भर भी भरोसेमंद नहीं ठेहरी
जाने किन किन पर भरोसा कर ठेहरी

मुझपे एतबार कर एतबार हासिल हो
मगर मैं तो जात से एक लड़की ठेहरी

तुम सोच लो क्या करना है मेरा फैसला
तुम्हे तो हर तरह की आजादी जो ठेहरी

मेरा रोना ,बोलना, चुप रहना सब मना
मैं तो बस यु ही बेवजह परेशान ठेहरी

करिश्मा कितने हादसे हुए है तुमसे
लोगो मे तो फिर भी तुम बेचारी ठेहरी

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3 JAN 2023 AT 18:36

हमने अपने जज्बे भी जज़्बात भी खोए
जिसने कुछ न खोया सब कुछ ही खोए

खोने को बचा हो तो खो दे हम भी सब
हमरा सब तो मिलने से पहले ही खोए

कुछ खासियत छुपा कर रखी थी हमनें
सम्भाला नहीं वक्त पर तो वो भी खोए

किसने क्या पाया ओर क्या खोया था
लोगों ने तो बेपरवाही में सब ही खोया

जाने कब मिलेंगा सब अपना मुझे भी
करिश्मा यार छोड़ो तुमने तो बस खोया

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22 DEC 2022 AT 21:31

साथ हो चाहे कोई भी हमारे हम महज़ तुम्हें ही सोचते हैं ओर सब रहे आधा अधुरा बात हो पुरी अपनी सोचते हैं

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22 DEC 2022 AT 21:25

कौन सा सफ़र हो पायेंगा मुझसे
अगर मुझे कभी साथ न हो तेरा

सुना माथा लेकर क्या ही करेंगे
अगर उस पर बोसा न हो तेरा

हाथों में लकीर लेकर भी क्या करे
अगर हाथ मे मेरे हाथ न हो तेरा

सब कुछ तो तेरा ही साथ मेरे
क्या ही हो अगर मैं न हुआ तेरा

ओर करिश्मा छोड़ दो किस्से ऐसे
तेरा मुकम्मल किस्सा न हुआ मेरा

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21 DEC 2022 AT 14:05

मुझे जो यु तुम छुप छुप कर देखोगे तो महज़ अपने ख्यालो में पाओगे
ज़रा होसला कर सामने आए अगर तो मुमकिन है हकीक़त बना पाओगे

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21 DEC 2022 AT 14:00

जब जब दरवाजा नहीं खुला खिड़कियाँ खोल सांस को लिया
चाहत के रिश्ते में बन्ध उसने घूंघट के अंदर से सांस को लिया

पहले सब को अपनें काबू मे कर रखा उसने मुठी में बांध कर
जब समझ आई उसे उसने हर जोड को हवा दे सांस को लिया

ऐसे तो थम गयीं थी कई दफ़ा एक उलझे हुए रिश्तो में सांसे
मगर जब उलझनें सुलझी तो भी उसने रहता से सांस को लिया

जब इश्क़ हुआ तो कुछ भी नहीं भाया एक बस सनम के सिवा
फिर बस हर बार उसके ओहरे मे रह कर हमने सांस को लिया

वो तो मर रहा था करिश्मा नासमझों की रह ग़लती कर के
एक आखरी बार फिर उसने मरने से पहले सांस को लिया

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