टूटकर किसीको हर रोज बिखरते देखा है बहुत करीब से किसीको हर रोज बदलते देखा है उसे क्या मालूम कितना मुश्किल है खुदको इस दर्द से बाहर निकाल पाना ना जाने कितनी ऐसी रातें गुजरी है हमारी जिसमें हमने चांद को ढलते और सूरज को निकलते देखा है
हां मैं अब भुलाना चाहती हुं तुम्हें दिया था जो जख्म तुने मिटाना चाहती हुं उन्हें भुलकर उन दर्द भरी यादों को फिर खुद से मिलना चाहती हुं मैं इन सभी बन्दिशों को तोड़कर आगे निकलना चाहती हूं मैं हां अब बस जीना चाहती हुं मैं
महसूस होती है मुझे ये दुरियां क्या तुम भी महसूस करते हो डर लगता है मुझे इस अकेलेपन से क्या तुम भी डरते हो हां खोई सी रहती हु मैं खयालों में कहीं क्या तुम भी खोए हुए हो लो कह देती हुं मैं आज तुम्हें मोहब्बत करती हुं मैं तुमसे क्या तुम भी करते हो