मंदिर का काम तो अब जोरों से शुरू,
दुआ करता हूँ, मस्जिद भी जल्दी बन जाये।
और उन दोनों के निर्माण के साथ,
पिछली सदी की नफ़रत भी मिट जाए।
ना कहे कोई हमे हिंदू, ना कोई मुस्लिम कह जाये,
नए दौर, नए भारत के हम सब भारतीय,
हम शांति-अमन के इंसान बन पाये।-
जश्न-ए-आजादी यूँ मना रहे हैं ......
भरे पेट जन-गण-मन गा रहे हैं और
खाली पेट चौराहों पर तिरंगा लिए नज़र आ रहे हैं ..-
इक नाम मैं गुमनाम हूं ,
मुझको आबाद तुम कर देना ।
जब लड़ने जाऊं बॉर्डर पे ,
तिलक मेरा तुम कर देना ।।
जब मरू देश के खातिर मैं ,
बस जिंदाबाद तुम कह देना ।
जब आए घर शव मेरा तो ,
बस कफ़न तिरंगा कर देना ।।
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वर्तमान राजनीतिक झलक और सरकार की स्थिति
(कविता अनुशीर्षक में) 👇-
एक जिद्द जहन में पाला जाए..
गहराई से खुद को जाना जाए..
जो रोड़े पड़े है राहों मे उनसे..
सीढ़िया अंबर तक डाला जाए...2
एक सनक सीने मे पाली जाए...
निराशा मन कि टाली जाए..
कर द्वंद खुदा से अपने...
नयी लकीरें हाथों में डाली जाए...2
एक सोच नयी अब लायी जाए..
आराम असहनीय मर्ज बन जाए..
नाज करे यह देश तुम पर...
काम वही तो किया जाए....2
आलस पर तू वार कर.. परचंड आघात प्रहार कर..
अजैय होने का संकल्प कर.. जीत कि फिर हुंकार भर..2-
मानवता अब नहीं रही, इन बेगैरत इंसानों में,
शर्म, हया, सब बेच चुके हैं, गलियों और बाजारों में,
यही दशा यदि रही देश की, अंत में सब पछताओगे,
आने वाले नव भारत पर,गर्व नहीं कर पाओगे।-