स्तब्ध निशा सी मौन मैं, खुद से पुछूँ हूँ कौन मैं
अतीत स्मृतियों को सहेज, जीवन पथ से गुजरूँ रोज-
लिखना मुझे आता नहीं, संवेदना को शब्दों ... read more
बातें ये आम हो रही है, बातें तमाम हो रही है
कल तलक न था कभी कोई भी मेरा खैर-ओ-ख्वाह
रूखसत होते ही जहां से खूबियाँ तमाम हो रही है....-
क्या खूब रिश्तों का व्यापार है ....
कल तक दिलों से जुड़े रिश्ते थे.....
आज रिश्ते तो है पर सब रिश्तेदार है........-
स्तब्ध सी खड़ी जीवन पथ पर मैं अकेली
अनबूझ प्रश्नों को ढूँढती जीवन की पहेली-
तन्हा- तन्हा करत जगत सब,
तन्हा के कोलाहल में बौराय |
जब तन्हा अावागमन जगत में,
तब 'सुकृति' काहे तन्हा मन भरमाय ||-
काश होता भी यूँ कि बीता पल लौट आता
वो पल बिछड़े मेरे हर इक अपनों से मिलाता
होते वो सारे लम्हें इक बार फिर से हकीकत
जिन्हें ये दिल अब सिर्फ बन्द आँखों में पाता...-
विरह वेदना लिखती हूँ मैं संवेदना लिखती हूँ
जब असह्य धारण हो संतप्त हृदय प्राण
मैं वनिता कविता लिखती हूँ......-
आजकल आस पास बदलते अपनों का मेला है
जरा सी तरक्की ने खूब खेल खेला है ......
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होती जब भी हसरत, उस रब का दीदार करने की
चूम कर माँ के कदमों को,जमीं पर रब को पाती हूँ-