QUOTES ON #ANTARMANN

#antarmann quotes

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25 MAR 2020 AT 0:34

मेरे अंतर्मन के बहुत रुझान है आजकल,
सोचता हूँ अब एग्जिट पॉल करा लूँ |

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9 JUN 2022 AT 23:06

अंतर्मन की ऊहापोह में कटती ज़िन्दगी में कुछ लम्हें तेरे साथ मुस्कुराना अच्छा लगता है...

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2 MAR 2024 AT 20:21

अपने अंतर्मन को जानो, सबसे पहले ए दोस्त तुम ख़ुद को पहचानो।
कोई काम होगा या नहीं होगा बाद में सोचना, पहले करने की ठानो।
करते करते हो जाएगा, एक अनुभवहीन व्यक्ति भी अनुभव पा जाएगा।
बस अपनी मेहनत, लगन अपने समर्पण और कर्म पथ को सही मानो।

वो सब कहते है ना कि कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना।
वो अगर कुछ नहीं कहते हैं तो समस्या है, उनके कहने को तारीफ़ मानो।
जो चला गया समझो वो तुम्हारा और तुम्हारी क़िस्मत में था ही नहीं।
जो रह गया है या जो मिल सकता है उसके लिए कुछ करने की ठानो।

अपनी छोटी-छोटी गलतियों से हर बार सीखना है तुमको याद रखो।
जो हो गया उसे दोहराना नहीं है इस कथन को अपना ब्रह्मास्त्र मानो।
अपने अंदर की खूबियों को तुम्हें ख़ुद से ही पहचानना होगा "अभि"।
अपने गुण अथवा अवगुण है पर काम कर के, बेहतर बनने की ठानो।

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13 MAY 2024 AT 12:47

अंतर्मन की सुनो, बाहर का शोर-शराबा सब एक दिखावा है।
जो भी है अभी ही है, बीता कल, आने वाला कल छलावा है।
आज जो असंभवलगरहाहै, देख लेना कल संभव हो जाएगा।
आज जो तूघबरारहाहै, कल तू दिल खोलकर मौज़ मनाएगा।
सबकुछ बहुतअच्छा है यहाँ पर बस तू देखना चाहता नहीं है।
जो दिख भी जाता हैं कभी कभार तुझको तो तू मानता नहीं है।
कि आज जो सब लोग ताने मार रहे हैं तेरी असफलताओं पर।
देखना कल इनको गर्व होगा इन सब को तेरी सफलताओं पर।
जीवन एक धारा है जो सतत बहतीरहतीहैं कभी रुकतीनहींहै।
मेहनतीलोगोंकी आत्मा आजीवन चलतीरहतीहैं थकती नहीं है।
मुझे मेरी सारीआदत अच्छीलगती हैं, मुझमें सबकुछ कमालहै।
सच्चाई, ईमानदारी, मेहनत इन चीज़ोंसे येपागल मालामाल है।
औरोंका तो पतानहीं "अभि" पर मुझे तुझपर गर्वहै जो जरुरी है।
बाकी दुनियाका क्याकरनाहै, ये समझ यहाँरहना तेरीमज़बूरीहै।

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8 JUL 2021 AT 19:09

गीत -मात्रा भार 16/16
बैठी कविता सोच रही है ,अन्तर्मन के एक कोनें से
कब निकलूंगी कब सवरुंगी, मैं करुं गर्व कब होनें से ।
राज़ जिया के कब खोलोगें
भाव हृदय के कब बोलोगें
कलम स्याही के संग मिलकर
रोको मत शब्द संजोने से,
बैठी कविता सोच रही है ,अन्तर्मन के एक कोनें से
कब निकलूंगी कब सवरुंगी, मैं करूं गर्व कब होनें से ।
हवा चलीं तब मद्धम-मद्धम
बरसा पानी छमछम-छमछम
प्रेम बीज उर में तब पहुंचा
उठें चटक शब्द नम होने से,
बैठी कविता सोच रही है ,अन्तर्मन के एक कोनें से
कब निकलूंगी कब सवरुंगी,मैं करूं गर्व कब होनें से ।
कोयल नें भी सूर लगाया
मां का आंचल तब लहराया
खुशियां आंगन में भर आई
नव कविता के जन्म होने से,
बैठी कविता सोच रही है ,अन्तर्मन के एक कोनें से
कब निकलूंगी कब सवरुंगी,मैं करूं गर्व कब होनें से ।
तत्क्षण भावुक भावावेश में
सज-संवरकर रस छंद वेष में
बाहर निकली अहसासों में
रुकेगी अभी न रोकें से,
बैठी कविता सोच रही है ,अन्तर्मन के एक कोनें से
कब निकलूंगी कब सवरुंगी,मैं करूं गर्व कब होनें से ।
निकली निखर प्रखर वेग में
चल दी मटककर आवेश में
आशिकों की आह तब निकली
हुई गर्वित कविता होने से,
बैठी कविता सोच रही है,अन्तर्मन के एक कोनें से
कब निकलूंगी कब सवरुंगी,मैं करूं गर्व कब होनें से ।।
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© Sunita Jauhari

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7 MAY 2024 AT 22:23

अंतर्मन के ज़ख्म ऐसे होते हैं मन की गहराई में न जाओ तो भरते नहीं है।
जो घाव होते हैं आत्मा की चोट के, इससे इतनीज़ल्दी हम उबरते नहीं है।
जो लोग तुम्हारी तरह के होंगे उनके लिए तो तुम सबसे अच्छे इंसान हो।
विपरीत सोच वाले लोग कभी भी हमारी अभिव्यक्ति को समझते नहीं है।
कहने को तो हरकोई ही कह देता है कि ताउम्र साथ दूँगा यार मैं तुम्हारा।
पर जो पलदोपल के हमराह होतेहैं कमबख़्त वो ज़्यादादेर ठहरते नहीं है।
हम "आत्मिक प्रेम" के अनुयायी हैं ओ मेरेदोस्त पता तो होगा ही तुमको।
ये "क्षणिक सुख" वाले खिलौने कभी भी हमारी आँखों में फटकते नहीं है।
"सीधी- सादी बात" बोलते हैं और बस अपने काम से काम रखा करते हैं।
हम वो शिकारी है मेरी जान, जिनके सामने शेर भी ज़्यादा भटकते नहीं है।
"काम-काजी इंसान" हैं हम, बस काम से काम रखने की आदत है हमारी।
जो अच्छालगा अच्छा कहा, बुरेको दफा किया, हम ज़्यादालटकते नहीं है।
हमको जानते हो तो अच्छी बात और नहीं जानते हो तो और भी अच्छा है।
काहे कि अच्छे लोगों के लिए बहुतअच्छेहैंहम और बुरेहमसे सटतेनहीं है।
बाक़ी तो सबकी अपनीअपनीकहानी और अपनाकिरदार होता है "अभि"।
अब बच्चेबिगड़े तो छोड़कर आगेबढ़जातेहैं हम, ज़्यादा डाँटते-डपटतेनहींहै।

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15 AUG 2021 AT 8:07

જે અંતર મનમાં બિરારજે છે
તેને ક્યાંય શોધવા જવાની જરૂર નથી....

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10 OCT 2020 AT 8:58

हमारे अंदर भी एक संसार है,
जिसे खुद से अवगत कराना हमारा ही काम है

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7 MAY 2023 AT 7:58

अंतर्मन की ऊहापोह में कटती ज़िन्दगी में कुछ लम्हें तेरे साथ मुस्कुराना अच्छा लगता है...

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6 APR 2022 AT 1:34

मर्मग्य कहा करते थे-
"माँ के भीतर भी एक ईश्वर बसता है"
इसीलिए,
माँ के प्रायः ईश्वर के समक्ष
झुकने तथा मांगने की गुत्थी
मुझें सदा से ही निरर्थक लगी

ईश्वर की लीलाओं को समझ पाने का बोध
इतना सरल जो नहीं होता

मैं कभी समझ ही नहीं पाई
कि
झुकना क्रिया नहीं
अपितु "कला" है

मेरे मूढ़ मस्तिष्क की धमनी बंजर सी प्रतीत हुई
जब मुझें ये ज्ञात हुआ
कि
"देने के क्षेत्र का विस्तार इतना बड़ा भी होता है
कि मांगकर भी दिया जा सकता है"

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