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संवरने का वक्त नही है, मंजिल मेरी दूर है
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कभी-कभी ईश्वर कितना निष्ठुर हो जाता है
कि मांगने पर भी नहीं देता,
और कभी कितना दयालु कि बिन मांगे ही
दे देता है,
हम कभी भी उसे न्यायाधीश के तौर पर
क्यों नहीं देख पाते??
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कितनी मुफलिसी है, खुशियों की यहाँ
कि मुस्कुराते भी है तो आँखें भर आती है!-
तुमसे एक अपना ही दर्द सहा नहीं जाता, जानिब
और कोई है जो मुल्क पर जाँ निसार को तैयार है!-
ये गहराइयों में डुबोने का भी क्या खुमार है तुझे, ऐ जिंदिगी,
कभी लतीफे भी शाद किया कर मेरी तबस्सुम की खातिर!-
कहीं न कहीं
ये हमारा ही चुनाव है
कि हम क्या है...
हमारी क्षमताओं
के अपेक्षाकृत!-
हमें चाहिए कि आइना भी देखा करें कभी-कभी
बस ये उंगलियां उठा लेना भी, अच्छी बात थोड़ी ही है-
मरने वाले को
चार कांधे
मिले न मिले,
रोने वाले
को एक
कांधा
जरूर मिलना चाहिए!-
तू इम्तिहान ले, ऐ जिंदगी हद तक अपनी
हम बर्दास्त का तुझको हुनर हर बतायेंगे!-
इस दुनिया के बीच कोई तो रास्ता होगा
कोई रास्ता जो इस दुनिया के बाहर खुलता होगा
इस घुटन भरी जिंदगी की साँसे जहाँ रहती है
रोते गुज़री जो रातें उनकी नींदे जहाँ बसती है
माथे की सिलवटों,
सहमी आँखों,
और बेहिसाब बेचैनी के बीच
कोई तो रास्ता होगा..........
कोई तो रास्ता होगा इस दुनिया के बीच
जो इस दुनिया से बाहर खुलता होगा-