हमारे दिल का ना सही कुछ अपने दिल का ख्याल कीजिए ,
छोड़ कर अपनी अमीरी का गुरूर
आप भी हमसे प्यार कीजिए|
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कश्तियां कागज की अब बनाते कहां है
वो महंगा वक़्त और उम्र दोनों खो चुके है
अब हम उतने अमीर कहां है ...-
गरम रोटी खाय निकम्मा ,,
जो ना बिस्तर छोडे़,,
मेहनत घर जो आय घर को,,
सुखी रोटी तोड़े !-
लाख सुख है गरीबी में भी
कम से कम चैन की नींद तो सोते हैं
वर्ना ये अमीर लोग तो
पैसे होते हुए भी रोते हैं
नाम और शोहरत तो बहुत है इनपर
पर चैन और सुख अब रहा नहीं
देखो इन गरीबों को भी
बस पेट भर खाने से ज्यादा कुछ चाहा नहीं
पैसे वाले तो बस नाम का खाते हैं
भूख का उन्हे ज्ञान नहीं
अरे जा कर देखो वो गरीब का घर
जिस पर खाने का सामान नहीं
बदल रहा है देश मगर
ये ऊंच नीच कब सुधरेगी
और मेरे इस देश की हालत
बतलाओ कब बदलेगी-
कबका खरीद लेती मैं तुम्हें, अगर
तुम पैसों में बिकते ...
तेरी डायरी के पन्नों में समा जाती,
अगर तुम केवल मेरे बारे में लिखते...-
भोजन की मात्रा से अपनी भूख को तौलता है
ग़रीब के लिए दो वक्त का भोजन ही अमीरी होती है-
Dekh kar hairaan thi sahab
Dil ki Ameeri thi ya Insaniyat ki Had
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हाँ मुझे शक है तेरी इंसानी जात पर ..
कयोंकि तू सवाल उठाता है गरीबों की औकात पर
देखना कभी महलाें में रहने वाले
बेबसी ,लाचारी ,लालसाओं को .. किसी मासूम की आँखों से ढलकते हुए-
Insaan ki koi keemat hi nhi hai yahan
Paisa ho to pyar bhi siddat se hota hai-
इन दिनों
बड़ी किफ़ायत से
सोचती हूँ तुम को
लम्हा लम्हा कर के
कई मुलाक़ातों में
जमा की तुम्हारी यादें
एक ही दिन में
सारी ख़र्च कर बैठूं
मैं इतनी भी अमीर नहीं
तुम्हारी सोच से
- दीक्षा
Inspired by a thought...-