दिल मेरा जैसे...
अखबार हो गया...
पढ़कर फेंक देना...
कारोबार हो गया...-
रोज़ पड़ कर फेंक दिया जाए ऐसा अख़बार नहीं हूं।
क्या भूल जाऊं तुमसे किए वादे,
अरे आम इंसान हूं कोई सरकार नहीं हूं।-
रोज पढा़ भी जाता हूँ और बिकने का इल्जाम भी है
हाँ,शायद आज कल के अखबार की तरह हूँ मै भी।
-
झूठ का दौर है साहब,
सच यहाँ बिकता नहीं अखबारों में।
जिंदगी जाने कहाँ खो गई,
मिल रहा मौत का सामान बाजारों में।-
Aaj Subha Subha mere ghar
Uski shadi ka prastav aya
Par khushi nhi hui 😞
Akhbar ke panne par jo tha-
ज़िन्दगी के रास्ते मुश्किल बड़े कुछ कुछ पेचदार है
हर कदम पर ठोकर देने छोटे बड़े पत्थर हज़ार है
किसने कह दिया कि साथ छोड़ देते है छोड़ने वाले
मेरी तकलीफ़ और दर्द तो मेरे प्रति बड़ा वफ़ादार है
बिखरी उम्मीदों का बिखरना जारी है आफ़ताब
फिर भी ख़ामोशी ओढ़ कर मुस्कुराने को तैयार है
अब लज़्ज़त नहीं आती ज़िन्दगी के इस प्लेट में
मौत करीब आकर गले लगने को हमसे बेक़रार है
वैसे दौर तो कई आए हँसने और गुनगुनाने के
पर बात वही है दिल शायद टूटे कांच पर सवार है
पूनम का चाँद भी कुछ कुछ लाल नज़र आता है
जैसे खून से नहा कर आता आजकल अख़बार है-
*छोटे शहर के अखबार*
*जैसा हूँ मैं जनाब...*
*दिल से लिखता हूँ.*
*इसलिए कम बिकता हूँ...!!*-
ख्वाहिश नही है अखबारों की सुर्खियां होने की...
दो चार साथी दिल से करीब रहे, बस दुनिया बहुत है.......
-
आईना सिर्फ एक तरफ का ही सच दिखता है इसलिये आईना नही transparent सीसा बनाइये ।
-
बहुत लगा चुका ये अखबार, इस शहर में आग,
अब इसी शहर के लोग, अखबार में आग लगाने वाले है-