शीर्षक - मैं आज़ाद हूँ...!!
जहाँ मेरे कपड़ो से मेरा चरित्र नापा जाए,
ऐसा समाज तुम रखो,
चेहरे की खूबसूरती से मेरा मोल आंका जाए,
ऐसा रिश्ता तुम रखो,
चमड़ी के रंग से जीने का हक़ दिया जाए जहाँ,
ऐसा पत्थरों का घर तुम रखो,
झूठी इज्ज़त के नाम पर जहाँ हमकों बेचा जाए,
ऐसी इज्ज़त तुम रखो,
हवस के भेड़ियों को जहाँ भगवान समझा जाए,
ऐसा मंदिर , मस्जिद तुम रखो,
मैं आज़ाद हूँ अपने चुनाव के लिए,
समझ आये ये बात अच्छा,
ना समझ आये तो अपनी हुक़ूमत ,
अपने तक तुम रखो,
जिस्म की जरूरत तुम्हारे लिए सही, मेरे लिए ग़लत,
ऐसे तराज़ू फैसलों के तुम रखो,
जहाँ मेरे कपड़ो से मेरा चरित्र नापा जाए,
ऐसा समाज तुम रखो,
हाँ नही चाहिए तुम्हारी हमदर्दी अब मुझे,
बराबरी के ढकोसले सारे अब तुम रखो...!!!
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