ईश्वर बनने की चाहत - और भूमि का बंटवारा
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धर्म या पाप की प्रयोगशाला ?
कोई भी धर्म जो मानव को मानव से घृणा करना सीखाता है ; पाप की प्रयोगशाला है और कुछ नहीं ।
अब आप देख लीजिए आपका धर्म क्या है ?-
सबसे बड़ा पाप
क्या विश्व का कोई भी व्यक्ति है सिद्ध कर सकता है कि जन्म के समय ही उसके मस्तिष्क में किसी धर्म की छाप थी ?
वह एक मानव पैदा हुआ था । धर्म का बीज उसके मस्तिष्क में बाद में डाला गया । बचपन में जो चीज मस्तिष्क में डाली गयी वह स्मृति में स्थापित हो गयी ।
दूसरे शब्दों में कहें तो किसी और ने उसके मासूम हृदय में औरों से घृणा का भाव डालने में अपनी भूमिका निभाई ।
अपने विचार दूसरों पर लादना इससे बड़ा कोई पाप नहीं है ।
और पीढ़ी दर पीढ़ी लोग यही कर रहे हैं ।
दुनिया में अशांति इसी कारण से है।-
धर्म
#धर्म हमेशा जनता की मेहनत को सत्ता की शक्ति में बदलने का औजार रहा है ।
#धर्म का लाभ उसे होता है जो धर्म सिखाता है,
और नुकसान उसे जो धर्म मानता है।
#"धर्म ने राजा को भगवान बनाया, और जनता को रेंगता हुआ कीड़ा।"
#"जिसे धर्म का ज्ञान है वह मंच पर है,
और जिसे भूख है वह चरणों में बैठा है।"
#"धर्म वह औजार है जिससे चालाक और पाखंडी लोग आत्मा की सफाई के नाम पर तुम्हारी जेब साफ करते हैं।"-
कर्म ही पूजा है ।
पर जब पूजा ही कर्म बन जाए तो सभ्यता का पतन प्रारंभ हो जाता है।
आइये इसे समझते हैं
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धर्मों की कुंडली -
मूर्खानंद गुरुजी / धर्मों के ठेकेदार !
पहले मुझे यह बताओ - कि जो सर्वशक्तिमान है उसे बताने के लिए किसी मेडिएटर की जरूरत है ? उसे किसी मेडिएटर की जरूरत नहीं है क्योंकि वह मति बदलने की ताकत रखता है ; तुम्हें जरूरत है ताकि तुम्हारा जीवन चल सके , तुम्हारा दाना पानी चल सके ।
मैं दावा करता हूं - यदि केवल एक पीढ़ी को तुम अपने धर्म के बारे में न बताओ तो अगली पीढ़ी में तुम्हारा धर्म खत्म हो जाएगा । यही तुम्हारे धर्म की ताकत है । यही दुनिया के हर धर्म की ताकत है ।
धर्म को पीढ़ी दर पीढ़ी बताया जाता है ब्रेनवाश किया जाता है । तुम ब्रेनवाश करके ईश्वर बनाते हो । एक ही घर में जन्मे चार बच्चों को अगर हम अलग-अलग धर्म में पालें तो चारों का ईश्वर अलग-अलग हो जाएगा । क्योंकि तुम्हारा ईश्वर बताने से पैदा होता है ।
हा हा हा
मेरे तर्कों को काट सकते हो तो काटो । हा हा हा-