प्रकृति की अंतिम पुकार
मैं व्यक्ति नहीं हूँ...
मैं हवा हूँ — तुम्हारी हर साँस में।
मैं धरती हूँ — जिस पर तुम्हारे कदम चलते हैं।
मैं ऊर्जा हूँ — जिससे तुम्हारी आँखें खुलती हैं।
मैं प्रकृति हूँ।
जिसने तुम्हें जन्म दिया,
तुम्हें पाला,
और अब तुम्हें आख़िरी चेतावनी दे रही हूँ।
सुनो, मनुष्य...-
नमस्ते दोस्तों !
पिछले कुछ समय से मैं अनुपस्थित था क्योंकि अपने विचारों को कंपाइल करने का काम कर रहा था ।
मेरे गहन आत्मचिंतन से निकला एक दर्शन जो व्यक्ति को सभी दुःखों और बंधनों से, जिंदगी से बिना भागे मुक्त कर सकता है , आपके सामने है । कृपया इसे पढ़ें । और जीवन रहते मोक्ष की ओर कदम बढ़ाएं ।
Santoshvad - A Revolution Within
The Path to Inner Peace and Self- Realization-
1. अपनी संतुष्टि के लिए किसी से छल करना जीवन में दुर्दशा और परेशानियों के सभी रास्ते खोल देता है।
2. पहले वह पति बर्बाद होता है जो अपनी पत्नी से छल करता है और फिर वह पत्नी बर्बाद हो जाती है जो अपने पति से छल करती है।
3. दो भाईयों को एक-दूसरे से इर्ष्या नहीं होती ; उनकी घरवालियों की आपसी जलन दोनों को जान का दुश्मन बना देती हैं।
4. परिवार उन महिलाओं के कारण ही टूट रहे हैं जो अपने पति की कमाई पर तो अधिकार जमाना नहीं भूलतीं परंतु उसके दुःख में उससे किनारा कर लेती हैं ।
5. निकम्मे एवं स्वार्थी तथा भोगी लोग इस दुनिया की सारी लड़ाइयों की वजह हैं।-
कहानी - प्रायश्चित
भाग - 1
यह कहानी दो कहानियों से मिलकर पूर्ण होती है ।
और दोनों कहानियाँ अपने आप में भी पूर्ण है ।पढ़ें और कमेंट करें ।
दूसरा भाग 2 दिन बाद ।
Read in caption ..-
नया साल
आज मंगलमय कहें
कल पीठ पीछे घात करें ।
साल नया हो या पुराना
क्यूँ चहककर बात करें ?
क्या बदला है खुद में हमने
जो खुशी से पागल होते हैं ?
इंसानियत समझ आ गई ?
फिर किस मद में खोते हैं ?
कुछ पलों का पागलपन यह
फिर सब प्रपंच क्या बाँच करें ?
साल नया हो या पुराना
बर्बाद दिन क्यूँ आज करें ?
आज गले लगाये जिनको
कल उनसे जात-पात करेंगे ।
खून के प्यासे धर्म-ध्वजा ले
सड़कों पे नंगा नाच करेंगे।
मुँह मोड़कर चल देंगे
जो जरूरतमंद कोई याच करे !
साल नया हो या पुराना
क्यूँ न सच की जाँच करें ?-
ढूँढ़ता हूँ ।
आज ढ़ूँढ़ता हूँ ; कल ढ़ूँढ़ता हूँ
समस्याओं के नित नए हल ढ़ूँढ़ता हूँ ।
एक खत्म होती है ; दूसरी चली आती है
होकर मैं विकल ढ़ूँढ़ता हूँ ।
बारिश की बूंदों-सी आती रहती हैं
गिरता - पड़ता हूँ ; संभल ढ़ूँढ़ता हूँ ।
कई बारगी सफल होता हूँ
कई बार होकर विफल ढूँढ़ता हूँ । ।-
गिरने की जितनी सीमाएं होती हैं कुमार्गी महिलाएं उससे भी ज्यादा गिर सकती हैं ।
-
जवाब नहीं मिला
रात भर नींद नहीं आई है ।
अवसाद की वजह से नहीं
बल्कि बिखराव की वजह से ।
बिखराव कोमल मनों का ।
बिखराव आत्मीय जनों का ।
बिखराव एक परिवार का ।
बिखराव एक संसार का ।
कितना नीचे गिर सकता है
एक दुर्व्यसनी व्यक्ति ?
किस हद तक जा सकती है
एक अधर्मणी महिला ?
जेहन में ये दो सवाल
सारी रात करवट बदलते रहे।
जवाब नहीं मिला ।।-