Nishant Rajsingh   (Nishant Raj Singh)
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कागज़ों पर रहमत नहीं है कलम,कागज़ों की बदौलत जिंदा है कलम 📝📖
Joined 14 September 2020


कागज़ों पर रहमत नहीं है कलम,कागज़ों की बदौलत जिंदा है कलम 📝📖
Joined 14 September 2020
23 JUL 2022 AT 20:12

उन तमन्नाओं को चलो आज फिर दफनाते है
अपनी कब्र पर फिर से फातिहा गाते हैं।

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19 APR 2022 AT 19:10

सभ्यता की दौड़ में ,
इतने सभ्य भी मत होना
की छत पर प्रेम करते कबूतरों
का जोड़ा तुम्हें अश्लील लगने लगे।

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3 APR 2022 AT 23:49

मैं नहीं मिलूंगा तुम्हें
भीड़ में,
बाजार में,
सुख में,
सुकून में,
बरसात में,
न हीं तुम्हारे अफसानों में
न हीं चांदनी रातों में;

मैं मिलूंगा तुम्हें
तुम्हारी तन्हाइयों में
उन दर्द की गहराइयों में
अधूरे चांद में,
रास्तों के सन्नाटों में
टूट के जुड़ सके
उन हालातों में।।

"निशांत राजसिंह" की कलम से

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1 APR 2022 AT 16:43

दिल को मेरे समझा उसने कागज का

पहले पहल उसपे खत लिखा
फिर लिखी उसने खता ;

कभी बनाया उससे मझधार का नाव
तो कभी बनाया उससे रेत का गांव

कभी इसे मुकद्दर हुई बारिश, तो कभी हुआ ये जेठ

आखिर थी तो कागज की ही
रुसवा हुआ ये रद्दी की भेंट।।

"निशांत राजसिंह" की कलम से

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24 MAR 2022 AT 22:40

वो खिड़की आज भी खुलती है,
वो सरर आज भी होता है

गुजरा करते थे कभी जिनके मोहल्ले से;
आज मजार सी शक्ल लिए बैठा है।।

"निशांत राजसिंह" की कलम से

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12 MAR 2022 AT 21:14

किसी की बातों पे बेवजह मैं हंसा ही नहीं
मेरे बटन से, किसी का दुपट्टा फसा ही नही।।

"निशांत राजसिंह" की कलम से

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1 MAR 2022 AT 23:08

आओ तो कभी सिरहाने बैठे
इन धूप से परे, इन धूलों से परे

इन जुल्फों पे फेरूँ अपने हाथ की लकीरें
जैसे सागर सहलाए रेत को

कुछ दुःख तुम भिगोना,कुछ मैं
कभी होठ तुम सील लेना कभी मैं।

मैं भागीरथ बन घूमूं ताउम्र
अंजाम जो मिले, तो तुझसे मिलके पूरा हो जाऊं

जो न भी मिले इस जन्म तो क्या
निहारेंगे एक दूजे को चांद–समंदर की तरह।।

"निशांत राजसिंह" की कलम से

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14 FEB 2022 AT 23:47

तुमने काला टीका लगाया

तुमने ओढ़ा काला दुपट्टा सिर पर

तुमने खोल रखी थी काली जुल्फ़ें

तुमने प्रेम सागर में देखी काली परछाई

तुमने इंद्र धनुष में भी डाला काला रंग

इतनी मुहब्बत तुम्हें इस रंग से कब हुई??

मैंने तो यूं ही तुम्हें अमावस का चांद कहा था।।!

"निशांत राजसिंह" की कलम से



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27 JAN 2022 AT 18:07

तू प्रेम समंदर की
धारा बन
स्पर्श करे मेरे मन को,

मैं बियाबान किनारे
खड़ा प्रिये
नमकीन चादर ओढ़ाऊं अपने तन को।

खुरदुरी आस,
खारा अपना प्रेम प्रिये ;
खींची चादर,समंदर अपनी राह लिए

कच्छ सा खारा
अपना प्रेम लिबास
तेरी विरह में,समेटा सारी रात प्रिय।।

"निशांत राजसिंह" की कलम से

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26 JAN 2022 AT 11:17

जब जब अपने हक के लिए
अहिंसक से हिंसक होगे,
तब तब वो देश की दुहाई देंगे,
सभ्यता की दुहाई देंगे,
संस्कारों की दुहाई देंगे;

गांधी,बोस,भगत की दुहाई देंगे।
तुम इसके बाद खुद को तुच्छ और लोग सरकार,देशविरोधी समझेंगे।


इसके बाद भी अगर नहीं टूटे,नहीं झुके
तो यही है तुम्हारा गणतंत्र।

"निशांत राजसिंह" की कलम से

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