उन तमन्नाओं को चलो आज फिर दफनाते हैअपनी कब्र पर फिर से फातिहा गाते हैं। -
उन तमन्नाओं को चलो आज फिर दफनाते हैअपनी कब्र पर फिर से फातिहा गाते हैं।
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सभ्यता की दौड़ में ,इतने सभ्य भी मत होना की छत पर प्रेम करते कबूतरों का जोड़ा तुम्हें अश्लील लगने लगे। -
सभ्यता की दौड़ में ,इतने सभ्य भी मत होना की छत पर प्रेम करते कबूतरों का जोड़ा तुम्हें अश्लील लगने लगे।
मैं नहीं मिलूंगा तुम्हेंभीड़ में,बाजार में,सुख में,सुकून में,बरसात में,न हीं तुम्हारे अफसानों मेंन हीं चांदनी रातों में;मैं मिलूंगा तुम्हेंतुम्हारी तन्हाइयों मेंउन दर्द की गहराइयों मेंअधूरे चांद में,रास्तों के सन्नाटों में टूट के जुड़ सकेउन हालातों में।।"निशांत राजसिंह" की कलम से -
मैं नहीं मिलूंगा तुम्हेंभीड़ में,बाजार में,सुख में,सुकून में,बरसात में,न हीं तुम्हारे अफसानों मेंन हीं चांदनी रातों में;मैं मिलूंगा तुम्हेंतुम्हारी तन्हाइयों मेंउन दर्द की गहराइयों मेंअधूरे चांद में,रास्तों के सन्नाटों में टूट के जुड़ सकेउन हालातों में।।"निशांत राजसिंह" की कलम से
दिल को मेरे समझा उसने कागज का पहले पहल उसपे खत लिखाफिर लिखी उसने खता ;कभी बनाया उससे मझधार का नावतो कभी बनाया उससे रेत का गांव कभी इसे मुकद्दर हुई बारिश, तो कभी हुआ ये जेठआखिर थी तो कागज की हीरुसवा हुआ ये रद्दी की भेंट।।"निशांत राजसिंह" की कलम से -
दिल को मेरे समझा उसने कागज का पहले पहल उसपे खत लिखाफिर लिखी उसने खता ;कभी बनाया उससे मझधार का नावतो कभी बनाया उससे रेत का गांव कभी इसे मुकद्दर हुई बारिश, तो कभी हुआ ये जेठआखिर थी तो कागज की हीरुसवा हुआ ये रद्दी की भेंट।।"निशांत राजसिंह" की कलम से
वो खिड़की आज भी खुलती है, वो सरर आज भी होता हैगुजरा करते थे कभी जिनके मोहल्ले से;आज मजार सी शक्ल लिए बैठा है।।"निशांत राजसिंह" की कलम से -
वो खिड़की आज भी खुलती है, वो सरर आज भी होता हैगुजरा करते थे कभी जिनके मोहल्ले से;आज मजार सी शक्ल लिए बैठा है।।"निशांत राजसिंह" की कलम से
किसी की बातों पे बेवजह मैं हंसा ही नहींमेरे बटन से, किसी का दुपट्टा फसा ही नही।।"निशांत राजसिंह" की कलम से -
किसी की बातों पे बेवजह मैं हंसा ही नहींमेरे बटन से, किसी का दुपट्टा फसा ही नही।।"निशांत राजसिंह" की कलम से
आओ तो कभी सिरहाने बैठेइन धूप से परे, इन धूलों से परेइन जुल्फों पे फेरूँ अपने हाथ की लकीरेंजैसे सागर सहलाए रेत को कुछ दुःख तुम भिगोना,कुछ मैंकभी होठ तुम सील लेना कभी मैं।मैं भागीरथ बन घूमूं ताउम्रअंजाम जो मिले, तो तुझसे मिलके पूरा हो जाऊंजो न भी मिले इस जन्म तो क्यानिहारेंगे एक दूजे को चांद–समंदर की तरह।।"निशांत राजसिंह" की कलम से -
आओ तो कभी सिरहाने बैठेइन धूप से परे, इन धूलों से परेइन जुल्फों पे फेरूँ अपने हाथ की लकीरेंजैसे सागर सहलाए रेत को कुछ दुःख तुम भिगोना,कुछ मैंकभी होठ तुम सील लेना कभी मैं।मैं भागीरथ बन घूमूं ताउम्रअंजाम जो मिले, तो तुझसे मिलके पूरा हो जाऊंजो न भी मिले इस जन्म तो क्यानिहारेंगे एक दूजे को चांद–समंदर की तरह।।"निशांत राजसिंह" की कलम से
तुमने काला टीका लगायातुमने ओढ़ा काला दुपट्टा सिर परतुमने खोल रखी थी काली जुल्फ़ेंतुमने प्रेम सागर में देखी काली परछाईतुमने इंद्र धनुष में भी डाला काला रंगइतनी मुहब्बत तुम्हें इस रंग से कब हुई??मैंने तो यूं ही तुम्हें अमावस का चांद कहा था।।!"निशांत राजसिंह" की कलम से— % & -
तुमने काला टीका लगायातुमने ओढ़ा काला दुपट्टा सिर परतुमने खोल रखी थी काली जुल्फ़ेंतुमने प्रेम सागर में देखी काली परछाईतुमने इंद्र धनुष में भी डाला काला रंगइतनी मुहब्बत तुम्हें इस रंग से कब हुई??मैंने तो यूं ही तुम्हें अमावस का चांद कहा था।।!"निशांत राजसिंह" की कलम से— % &
तू प्रेम समंदर की धारा बन स्पर्श करे मेरे मन को,मैं बियाबान किनारे खड़ा प्रियेनमकीन चादर ओढ़ाऊं अपने तन को।खुरदुरी आस, खारा अपना प्रेम प्रिये ;खींची चादर,समंदर अपनी राह लिए कच्छ सा खारा अपना प्रेम लिबास तेरी विरह में,समेटा सारी रात प्रिय।।"निशांत राजसिंह" की कलम से -
तू प्रेम समंदर की धारा बन स्पर्श करे मेरे मन को,मैं बियाबान किनारे खड़ा प्रियेनमकीन चादर ओढ़ाऊं अपने तन को।खुरदुरी आस, खारा अपना प्रेम प्रिये ;खींची चादर,समंदर अपनी राह लिए कच्छ सा खारा अपना प्रेम लिबास तेरी विरह में,समेटा सारी रात प्रिय।।"निशांत राजसिंह" की कलम से
जब जब अपने हक के लिए अहिंसक से हिंसक होगे, तब तब वो देश की दुहाई देंगे,सभ्यता की दुहाई देंगे,संस्कारों की दुहाई देंगे;गांधी,बोस,भगत की दुहाई देंगे।तुम इसके बाद खुद को तुच्छ और लोग सरकार,देशविरोधी समझेंगे। इसके बाद भी अगर नहीं टूटे,नहीं झुकेतो यही है तुम्हारा गणतंत्र।"निशांत राजसिंह" की कलम से -
जब जब अपने हक के लिए अहिंसक से हिंसक होगे, तब तब वो देश की दुहाई देंगे,सभ्यता की दुहाई देंगे,संस्कारों की दुहाई देंगे;गांधी,बोस,भगत की दुहाई देंगे।तुम इसके बाद खुद को तुच्छ और लोग सरकार,देशविरोधी समझेंगे। इसके बाद भी अगर नहीं टूटे,नहीं झुकेतो यही है तुम्हारा गणतंत्र।"निशांत राजसिंह" की कलम से