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If my words could fly,
I would have loaded them with kisses,
And would have sent them to you,
So that they could make you
feel me behind your ears,
So that they could remind you of feelings
that have been lost for years.
If my words...
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लोग पूछते हैं की लफ्ज कहाँ से लाते हैं,
हम तो बस इस दिल का हाल बतलाते हैं।
जरा सा कलम को कागज पर रुलाते हैं,
जनाब यूँ ही नही हम शायर कहलाते हैं।।-
जो हो मुमकिन तो लाशें छुपा दीजिए
वरना जाकर नदी में बहा दीजिए
कह दो सबसे ज़बानों पे ताला रहे
जो न मानें तो बल से दबा दीजिए
वेंटिलेटर चले ना चले छोड़िए
उसपे फ़ोटो बड़ी सी छपा दीजिए
जैसे ही ख़त्म हो ये कोरोना के दिन
हिंदू मुस्लिम को फिरसे लड़ा दीजिए
है इलेक्शन के पहले ज़रूरी बहुत
फिरसे नफ़रत दिलों में बसा दीजिए-
कैसे समझाओगे इन ज़हरीली हवाओं को "मीर"
की दिल इक इबादतगाह हैं नफ़रत की जगह नहीं
Kaise Samjhaoge Un Zahreeli Hwaon ko Meer*
Ki Dil ek Ibadatgah Hain Nafrat ki Jagah Nahi.-
इज़्ज़त का कुछ ख़ौफ़ नहीं था, ख़ौफ़ न था रुसवाई में
जाने कितनी हिम्मत थी उस बचपन की सच्चाई में !!
दादी नानी की बातें अब समझे हैं तब जाना है
जीवन भर का दर्द छुपा था बातों की गहराई में
आज तो अब्बू अम्मी हमको धूप नहीं लगने देते
जब ना होंगे कौन बुलाएगा अपनी परछाई में
तुमने अपना सारा जीवन ख़ुद-ग़र्ज़ी के नाम किया
अब बाक़ी जीवन काटोगे कमरे की तन्हाई में !!
आज उन्हीं बहनों ने हम को फिरसे राह दिखाई है
कल तक जो उलझी रहती थीं, कपड़ों की तुरपाई में
आख़िर क्यूँ ‘शमशेर’ के शेरों में दिलचसपी रखते हो?
जाने क्या मिलता है तुमको शेरों की गहराई में !!-
मैं फ़क़त लिखता रहा गर मुल्क के हालात पर
तो ग़ज़ल बन्ने से पहले, मर्सिया हो जाऊँगा!
मार कर तुम बेगुनाहों को बचोगे कब तलक ?
वक़्त हूँ मैं, ज़ख़्म बन कर फिर हरा हो जाऊँगा
میں فقط لکھتا رہا گر ملک کے حالات پر
تو غزل بننے سے پہلے مرثیہ ہو جاؤں گا
مار کر تم بےگناہوں کو بچوگے کب تلک
وقت ہوں میں،زخم بن کر پھر ہرا ہو جاؤں گا-