जो अधूरे रह गए
जहां किताब पकड़नी थी वहां मजदूरी की
जहां छत के नीचे सोना था वहां आसमान के नीचे जिंदगी गुजरी
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मेरे भी कई अरमान थे
मैं संभाल नहीं पाई जिन्हें
ऐसे बहुत से जज़्बात मेरे थे....-
कोई भी ना समझ पाया
उन अनसुलझे सवालों के जवाब थे....
🙏पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़ें🙏
©कुँवर की क़लम से....✍️
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'मेरे भी कई ख्वाब थे',जो पढ़ न सका वो किताब थे,
हालात बुरे हैं मेरे,वरना किस्मत में कई खिताब थे।
चिलचिलाती धूप से परे ,सीने में कुछ आफताब थे,
दौर था वो बचपन का,हाथ में कलम और दवात थे।
हमारी भी कई मंजिलें थीं ,जिन्हें पाने को बेताब थे,
समंदर नहीं था मगर , हुनर में बहुत सारे तालाब थे।
कड़ी मेहनत का शौक था ,हम भी घर के नवाब थे,
पंख खोलती तो बताते,हर सवालों के हम जवाब थे।-
लेकिन जिंदगी ऐसे बुरे हालातों में गुज़री मेरी,
कि मुझे वक़्त ने कभी आसमां देखने का
मौका नहीं दिया!-
रद्दी कांधों पे उठाए सपने किताब के,
मेरे भी कई ख़्वाब थे!!
बंदिशों की ज़िंदगी में भी इरादे इंक़लाब के,
मेरे भी कई ख़्वाब थे!!
काँटों भरी राहें थीं पर मंज़िल में गुलाब थे,
मेरे भी कई ख़्वाब थे!!
कोयले सी दुनिया के हम हीरे नायाब थे,
मेरे भी कई ख़्वाब थे!!
टूटने से पहले बेहिसाब थे,
मेरे भी कई ख़्वाब थे!!!!-
मैंने सुना है बच्चों को देश का भावी कर्णधार कहते हैं
पर खेलने और पढ़ने के उम्र में काम पर भेज देते है
विश्व बाल निषेधता के लिए आज के दिन तो कितने लोग प्रण भी लेते है
फिर भी यहाँ बच्चों के साथ बचपन भी बिकते है
मेरे भी कई ख्वाब थे
अभी तो मुझे भी करनी थी पढाई
किस्मत बोले या फिर बोले हालातों ने मुझ जैसे कई छोटे बच्चों को कलम के जगह
पैसे कमाने की लत लगा डाली
अब किसी को क्या बताये कितने मजबूर है हम
बस इतना समझ लीजिए हम छोटे बच्चे नहीं रहे साहब
चंद पैसे कमाने वाले मजदूर है हम।।-
बच्चों को है हमें पढ़ाना,
नहीं है उनसे काम कराना,
बच्चों को है हमें सिखाना,
नहीं है उनको काम पे जाना,
ये उम्र है उनकी पढ़ने की,
करने दो उनको अपने मन की,
मत भूलों ये बच्चे है,
उम्र में बहुत कच्चे है।
काम करेंगें तो पढ़ेंगें कब,
पढ़ेंगें नहीं तो बढ़ेंगें कब,
बच्चे मन के सच्चे है,
समझ के अभी कच्चे है,
पढ़ा के देखों, सीखा के देखों,
बदलेंगें कल, आजमा के देखों।-
जो अधूरे रह गये
और अधूरे ख्वाब बहुत दर्द देते है
अधूरी ख्वाहिशे दिल-ओ-दिमाग़ में
चुभती है, सिसकती है,
ख़लिश-ए-दर्द बनकर भटकती है
लहू में बिजलियाँ बनकर खटकती है
लेकिन रहने दो, जाने दो साहिब।
ख्वाहिशे और ख्वाब होते ही अधूरे है।-