सच्चे इश्क़ में पड़ा आशिक़,
समन्दर नहीं देखता गहराई नहीं देखता।
डूब जाता है माशूक के प्यार में वो इस कदर,
रूसवाई नहीं देखता वो तन्हाई नहीं देखता।
महबूब की आँखें जो दिखादे, देख लेता है,
अच्छाई नहीं देखता वो बुराई नहीं देखता।
खुद को जोड़ लेता है अपने सनम से इस कदर वो,
के जुदा होकर भी उस से वो जुदाई नहीं देखता।।
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