अज़ीज़ था हमको यूं उनका हमें मुसल्सल निहारना,
आखिर क़ुर्बत की तिश्नगी लाज़मी होती है, जनाब ।-
तीश्नगी सी लगने लगी है मुझे....
उस निष्फ से इश्क की दो बूँदों को तरसता हूँ मैं....।-
वाक़िफ है सारी दुनियाँ मेरे मिज़ाज से,
हवाएँ भी खौफ खाती हैं मेरे चिराग़ से
तिश्नगी का मेरी, अब न तू हिसाब कर
पाला नही पड़ा तेरा जंगल की आग से
जलवों से है हमारे, इस दुनिया में रौशनी
दौरे ख़िजां मिटा दें, हम गुज़रें जो बाग से
कहते हैं लोग शायर, आशुफ्ता-सर हैं हम
खुदको सजाए फिरते हैं दामन के दाग से-
तिश्नगी केे सिवा बता तेरा 'असर' क्या है,
होगा तू जहां में कुछ भी ऐ सनम पर.....
बता मेरे बगैर तू क्या है ??-
उफ्फ!... ख्वाहिशों की तिश्नगी का आलम ये कैसा है
मुकम्मल इक भी नहीं और कतारें हजारों है.........-
तू कह तो सही तेरी कही हर एक बात कबूल है
तेरी चाहत में तेरे हिज़्र का आफताब भी कबूल है
तेरे सेहरा जैसे इश्क़ की तिश्नगी भी कबूल है
तेरी यादें और तन्हा मेहताब भी कबूल है-
मेरी तिश्नगी रही, तपता सहरा बेहिसाब...
तेरा इश्क था, समंदर का पानी खारा !
Meri tishngi rahi, tapta sahra behisaab...
Tera ishq tha, samander ka paani khara !-
सहरा की तिश्नगी का अंदाज़ा है मुझे
मैंने भी कभी रेत के समंदर को
अश्क़ों से भरने की कोशिश की थी-
Hume lagta tha, hum unke liye khas han.
Malum abhi-abhi hua, unki mehfil-e-aam bhi khaas hai.-
Tumhari baato m kuch alag hi tishnagi h
Shayad is hi liye meri ♡ mohabbat parwan chadhi h
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