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जब जब ख्वाबो में तुम्हे सोचा
महक उठते है मेरे लफ्ज़
दिल के एहसासों मे डूबी हुई
वो एक नज्म हो तुम 💔
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रात के कसे हुए शिकंजे से आज़ाद हुई मेरी रूह
मानो रात बर्फ की तरह वक़्त की गर्मी से पिघल गई
पूरी कविता अनुशीर्षक में-
बह्र-- 2122 1212 22
इश्क़ है मुझको इसकी राहत से
शायरी कर रही हूँ मुद्दत से।
याद आते हो हर घड़ी मुझको
दिल तड़पता रहा ये शिद्दत से।
सोचकर तुझको कहती हूँ जो शे'र
देखती है ग़ज़ल भी हैरत से।
तुम कभी शाम को चले जाओ
बैठ जाते हैं हम भी फुर्सत से।
हाल मेरा भी तुझ से मिलता है
हूँ मैं अनजान अपनी हालत से।
ठेस लग जाये ऐसा मत बोलो
तुम हो वाकिफ़ "रिया" की आदत से।-
ख़ैरियत पूछने पर मुस्कुराता बहुत है..
मोहब्बत कर बैठा है शायद किसी से..!-
सोचती हूँ तुम्हें एक इनाम दूँ।
इस मुहब्बत तले खुशनुमा शाम दूँ।
इन निगाहों के झेलें है कितने सितम।
अपनी बाहोँ में तुमको मैं आराम दूँ।
सर झुका के चले तुम सदा साथ में।
सर झुका के तुम्हें मैं नया नाम दूँ।
मेरी चाहत में तड़पे कई शामें तुम।
है तमन्ना कि चाहत को अंजाम दूँ।
हमसफर मैं बनूंगी तुम्हारी सनम।
ये खबर भी मैं तुमकों सरेआम दूँ।
सज रही हैं ये 'धानी' तुम्हारें लिए।
सुरमई नैनों से तुमकों पैगाम दूँ।-
इस से बढ़के बाहारों का सुबूत क्या होगा
मैं ने देखा है अपने ज़ख्म का हरा होना
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दिल मे अपने मोहब्बत को उसकी मैं इस कदर रखता हूं
उसकी नफरतों पर भी गजल लिखने का हुनर रखता हूं__-