તમે જિંદગી એવી ખુમારી સાથે જીવી ગયા
ઝેર ખાઈ ખુદ, ખલીલ ફક્ત ગઝલ મૂકી ગયા
સારા નરસા પ્રસંગોમાં અડીખમ સદા ઉભા રહ્યાં
શેર સંભળાવી સૌને, શીખવા માટે સાદગી મૂકી ગયા
આવું વ્યક્તિત્વ ક્યાંથી માળવા મળશે ઈશ,
આજે તારા ઘરમાં, ગુજરાતનું જ્યોત મૂકી ગયા
સાંજનો આથમતો સૂરજ પણ આજે વિચારશે કંઈક
સોનેરી અજવાસમાં, લાગણીનું ખાલીપો મૂકી ગયા
ખુદાના દરબારમાં ખૂબ મોટી મહેફિલ જામી હશે
ખલીલ પહોંચ્યા જન્નતમાં, ગઝલ અહીં મૂકી ગયા-
ख्यालों का इत्र हवा में कुछ इस तरह से मिला है
उम्मीदों की शाम में तेरा सहारा जो मिला है
यादों को कोई बंदिशें रोक नहीं सकती
मुझे तेरी बातों का सहारा जो मिला है
थम जाते है कदम मेरे अक्सर चलते हुए
ढलते सूरज को रात का बहाना जो मिला है
किनारे आँखों के पानी से भर जाया करते है
महफ़िल में तेरे नाम का ज़िक्र जब हुआ है
झुर्रियों ने घर बना लिया मेरे चेहरे पर
तेरे इंतज़ार में जुनून इश्क़ का मिला है
की मोहब्बत छुपते छुपाते तुझसे बेपनाह
अब न कोई खेद न कोई गिला मिला है
हुआ न मुक्कमल इश्क़ मेरा इस जहाँ में
उसके हर लम्हें में ज़िन्दगी का सबक मिला है-
यादों का गुल्लक आँखों मे सजाए
खुशियों की किश्तों में उम्र गुज़ार लूँगा
शिकायतों की सिलवटों में वक़्त खर्च कर दिया
तेरी बेवफ़ाई की सज़ा में अकेले काट लूँगा
ज़िन्दगी लाख मुसीबत ढोह दे सीने पे
मुस्कुरा के खुदका रास्ता निकाल लूँगा
तन्हाई की खाई में अब कूदना नही चाहता
खुद को तेरे लिए गिरवी रखवा लूँगा
ताकत नहीं मुझमें तरी ख्वाइशों से झूझने की
खुद को जला करके तुझको उजागर कर लूँगा
अहंकार को कभी जीतने नही दूंगा
संग रह कर खुद को आज़ाद कर लूँगा
हर डगर पर अम्बर के पहाड़ खड़े है
ओ ख़ुदा तेरे सहारे सबसे झूझ लूँगा-
वो रोए बेमतलब की बातों में
हर बार तुम्हें मनाना होगा
पूरी कविता अनुशीर्षक में-
When we celebrate death equally as we celebrate birth, it's then that humanity will be relieved from venom of materialism
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मुसीबत हर किसी के ज़ेहन में होती है
कोई साथ तकलीफ़ में देना नही चाहता
थकान उन कंधों पर भी लगती है
अपनों का दिल दुखाना नही चाहता
ज़िम्मेदारियाँ दरियाँ जैसी व्यापक खड़ी है
पिघलके खुद ही किसी को बताना नही चाहता
जिल्लतें ज़माने भर की सह लेंगे मगर
तेरी रहमत के बगैर रहना नही चाहता
ख़िदमत में मुझे कुछ न चाहिए अब,
ख़ुदा तेरा सहारा छोड़ना नही चाहता
सहारा हर किसी को चाहिए इस जहाँ में
उसे जताकर कोई कमज़ोर होना नही चाहता-
'કેમ છો' પૂછવાની રીત બદલીએ
'હું તમારી સાથે છું' એમ કહીએ
પૂરી કવિતા અનુશીર્ષક માં-
उम्र भर की चाहत पल भर में दे पाओगे क्या?
पथिक के हर सफर में साथ दे पाओगे क्या?
दर्द के तोहफ़े कई अपनों ने दिए है
उम्मीद की किरण बन पाओगे क्या?
सिलवटे रिश्तेदारों की ऊंची उठती है
खुद को मेरे साथ खुश देख पाओगे क्या?
उम्मीद नहीं हारी बदनसीबी के आगे
ख़ुदा की पहल पे सवाल कर पाओगे क्या?
शोहरत के दामन में सब एकजूट होंगे
मुफ़लसी के दिनों में साथ निभाओगे क्या?
नफ़रतें खूब बिकती है इश्क़ की महफ़िल में
समेट के खुद को मोहब्बत कर पाओगे क्या?-
ગઝલની ઝલકમા પલક પલળી થઈ
કલમની સ્યાહિમા યાદો પલળી ગઈ
હતી વિરહની ભીનાશ તેના અવાજમા
કિસ્મતના વેર સામે પ્રેમ ત્યજી ગઇ
ખોવાઇ ગયું ભાન મારૂ એને જોઈને
સ્પર્શથી મારા દુઃખો સમાવી ગઇ
લાગણીના પ્રવાહ સામે ઉંમરને વાંધો પડ્યો
પ્રેમની રેખાઓ આપોઆપ કરમાઈ ગઇ
હેતની હેલ્લી વચ્ચે પરિવારમા વિઘન નડ્યો
વરસતા વ્યવહારમા એ અકળાઈ ગઇ
એકલતામા ભળકયૂ એનું હૃદય એકલું
ન્યાયની બાજી જાતી પર નમી ગઇ
વિરહની વેદના નયનના ખૂણે સમાવી
મહાદેવ સમી ધ્રુસકે ધ્રુસકે રડી ગઇ-
थक गया हूँ खुद को संभालते संभालते
तकिया भी रो पड़ा मुझको सुनते सुनते
उम्मीद की कश्ती अब डूबने लगी है
थक गया हूँ दुनिया से लड़ते झगड़ते
इरादों में अब जान नहीं बची है
थक गया हूँ ख़ुदको अब बचाते बचाते
यूँ मुमकिन नहीं सब भूल जाना मालिक
बाल बाल बचा हूँ ख़ुदको जलाते बुझाते
नाक़ामियाँ कई है बेशक मुझमे
टूट जाता हूँ अक्सर खुदको जोड़ते जोड़ते
चैन से जीना भी एक ख़्वाब है
ज़रूरतें निचोड़ रहा हूँ अब सोचते समझते
हाथ थाम ले अब जान नहीं मुझमें
दर बदर ठोकरे खाइ मैंने सिसक सिसकके
ख़ुदा तेरे दरबार में फिर फ़क़ीर आया
तुझे मिलकर रो पड़ा वो बिलक बिलकके-